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Tuesday, July 15, 2025
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Demonetisation: नोटबंदी पर SC में सुनवाई पूरी, याचिकाकर्ता ने लोगों को हुई दिक्कत का दिया हवाला, सरकार ने दिया ‘जरासंध’ का उदाहरण

Demonetisation: नोटबंदी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में कुल 58 याचिकाएं दायर की गई हैं. इस मामले में बीते दिन यानी मंगलवार को भी सुनवाई हुई थी.

Supreme Court hearing against demonetisation five judge bench reserves verdict ann Demonetisation:  नोटबंदी पर SC में सुनवाई पूरी, याचिकाकर्ता ने लोगों को हुई दिक्कत का दिया हवाला, सरकार ने दिया 'जरासंध' का उदाहरण

सुप्रीम कोर्ट

 

Demonetisation: 2016 में हुई नोटबंदी को गलत बताने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. कोर्ट ने सभी पक्षों से 2 दिन में लिखित दलील जमा करवाने को कहा है. साथ ही, केंद्र सरकार और रिज़र्व बैंक को नोटबंदी के फैसले से जुड़ी प्रक्रिया के दस्तावेज सीलबंद लिफाफे में सौंपने की अनुमति दी है. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में 58 याचिकाएं दाखिल हुई थीं.

जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने 24 नवंबर को मामले पर विस्तृत सुनवाई शुरू की थी. जस्टिस नज़ीर के अलावा संविधान पीठ के अन्य 4 सदस्य हैं- जस्टिस बी आर. गवई, ए. एस. बोपन्ना, वी. रामासुब्रमण्यम और बीवी नागरत्ना. जजों ने इस दौरान याचिकाकर्ता पक्ष की तरफ से पी चिदंबरम और श्याम दीवान जैसे वरिष्ठ वकीलों को सुना. वहीं, केंद्र सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी दलीलें रखीं. वरिष्ठ वकील जयदीप गुप्ता ने रिज़र्व बैंक की तरफ से बहस की.

6 साल से लंबित है मामला

8 नवंबर 2016 को केंद्र सरकार ने 500 और 1000 के पुराने नोट वापस लिए थे. इसके खिलाफ कई याचिकाएं दाखिल हुई थीं. 16 दिसंबर 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने मामला 5 जजों की संविधान पीठ को भेज दिया था, लेकिन तब सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी पर रोक लगाने समेत मामले में कोई भी अंतरिम आदेश देने से मना कर दिया था.

केंद्र ने जरासंध का दिया उदाहरण

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपने फैसले का पुरजोर बचाव किया. अटॉर्नी जनरल वेंकटरमनी ने बताया कि यह टैक्स चोरी रोकने और काले धन पर लगाम लगाने के लिए लागू की गई सोची-समझी योजना थी. नकली नोटों की समस्या से निपटना और आतंकवादियों की फंडिंग को रोकना भी इसका मकसद था. इस दौरान उन्होंने महाभारत के पात्र जरासंध का भी उदाहरण दिया. उन्होंने कहा कि जिस तरह जरासंध को चीर कर दो टुकड़ों में फेंका गया था, उसी तरह इन समस्याओं के भी टुकड़े किए जाना जरूरी था.

केंद्र सरकार ने यह बताया कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट, 1934 के तहत रिजर्व बैंक और सरकार के पास किसी करेंसी नोट को वापस लेने का फैसला लेने का अधिकार है. नोटबंदी के कुछ समय के बाद संसद ने भी स्पेसिफाइड बैंक नोट्स (सेसेशन ऑफ लायबिलिटी) एक्ट, 2017 पारित कर इसको मंजूरी दी. ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि नियमों का पालन किए बिना नोटबंदी को लागू किया गया था.

रिज़र्व बैंक की दलील

केंद्र सरकार ने यह दावा भी किया कि नोटबंदी की सिफारिश रिजर्व बैंक ने की थी. इसे काफी चर्चा और तैयारी के बाद लागू किया गया था. रिज़र्व बैंक के लिए पेश वरिष्ठ वकील ने कहा कि यह एक आर्थिक फैसला था. इसकी कोर्ट में समीक्षा नहीं हो सकती. यह एक नीतिगत फैसला था. उन्होंने यह भी कहा कि इस फैसले से लोगों को शुरुआती दिक्कतें हुईं, लेकिन इसका मकसद देश को मजबूत करना था.

‘सरकार ने नहीं दी पूरी जानकारी’

याचिकाकर्ता पक्ष की तरफ से सबसे पहले वरिष्ठ वकील चिदंबरम ने बहस की. उन्होंने कहा कि सरकार ने नोटबंदी के फैसले से पहले की प्रक्रिया की ठीक से जानकारी नहीं दी है. न तो 7 नवंबर, 2016 को सरकार की तरफ से रिज़र्व बैंक को भेजी चिठ्ठी रिकॉर्ड पर रखी गई है, न यह बताया गया है कि रिज़र्व बैंक की सेंट्रल बोर्ड की बैठक में क्या चर्चा हुई. 8 नवंबर को लिया गया कैबिनेट का फैसला भी कोर्ट में नहीं रखा गया है.

चिदंबरम ने यह दलील भी दी कि यह फैसला RBI एक्ट, 1934 के प्रावधानों के मुताबिक नहीं था। इस एक्ट की धारा 26 (2) कहती है कि नोट वापस लेने से पहले लोगों को पहले सूचना दी जानी चाहिए, लेकिन यहां एलान के तुरंत बाद देश की 86% मुद्रा अमान्य करार दी गई. इससे लोगों को व्यापार और रोजगार का भारी संकट उठाना पड़ा. उनके मौलिक और संवैधानिक अधिकारों का हनन हुआ.

वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने भी नोटबंदी लागू करने के तरीके में कमियां गिनाईं. उन्होंने कहा कि पुराने नोट बदलने की तारीख में परिवर्तन किया गया. नवंबर और दिसंबर 2016 में जो लोग भारत से बाहर थे, उन्हें नोट बदलने का मौका नहीं मिला. खुद उनके मुवक्किल के 1.68 लाख रुपए इस वजह से फंस गए।

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