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Thursday, July 31, 2025
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पिता से धोखा:बेटों के नाम प्रॉपर्टी ट्रांसफर करके बेघर हुए रिटायर्ड सूबेदार, हक में फैसला आने पर भी नहीं मिल रही छत

अक्सर फिल्मों में बेटे जायदाद के लिए पिता को घर से बाहर निकाल देते हैं। बुजुर्ग पिता दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हो जाते हैं। कुछ ऐसी ही कहानी है देश के लिए 26 साल तक आर्मी में नौकरी करने वाले बुजुर्ग बिशन दास की। 75 वर्षीय बिशन दास रिटायर्ड सूबेदार हैं। 26 साल नौकरी की और अपना घर बनाया। बड़ा बेटा पुलिस में इंस्पेक्टर है और दूसरा इंजीनियर, लेकिन बिशन दास किराये के मकान में रहने को मजबूर हैं क्योंकि बेटों ने उन्हें घर से निकाल दिया। दोनों में से कोई उन्हें अपने पास रखने को तैयार नहीं है।

पंजाब पुलिस में इंस्पेक्टर बेटा 10 साल से अलग रह रहा है और दूसरे इंजीनियर बेटे ने साल 2021 में उन्हें अपने ही घर से बाहर कर दिया। बिशन दास ने 2021 में ही जिला प्रशासकीय काॅम्प्लेक्स में एसडीएम-1 की कोर्ट में सीनियर सिटीजन एक्ट के तहत केस लगाया। करीब एक साल तक चले इस केस में 5 मई 2022 को फैसला उनके हक में हुआ और एसडीएम ने मेंटीनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पैरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन एक्ट 2007 की धारा 239 (1) के तहत बिशन दास को मकान देने का फैसला सुनाया। एक साल बाद भी बुजुर्ग बिशन दास को कोई रखने के लिए तैयार नहीं और न ही घर का कब्जा दिलाया जा रहा है।

बुजुर्ग बिशन दास आदमपुर में किराये के मकान में गुजारा कर रहे हैं और कभी-कभी बेटी के पास रहते हैं। बिशन दास 1967 में आर्मी में भर्ती हुए और साल 1991 में आर्मी की 117 इंजीनियर रेजिमेंट से नायब सूबेदार के रैंक से रिटायर्ड हुए। बिशन दास ने बताया कि वे पिछले हफ्ते शुक्रवार को भी एसडीएम ऑफिस गए, वहां नए अफसर थे। उन्होंने कहा कि वे केस पढ़ने के बाद ही बात कह सकते हैं। उन्होंने कहा कि एक साल से न प्रशासन उन्हें कब्जा दिला रहा है और न ही पुलिस इसमें मदद कर रही है। बिशन दास ने कहा कि आदमपुर एरिया के कुछ प्रशासनिक अधिकारी मामले को लटकाना चाहते हैं।

75 साल के बुजुर्ग की दास्तां- कभी किराये तो कभी बेटी के पास रह रहे

अपनी दास्तां सुनाते हुए बिशन दास कई बार रोए और बोले कि बेटों को पढ़ाया-लिखाया। अब इस हालत में उन्हें कोई पास रखने को तैयार नहीं। उनकी पत्नी हरबंस कौर का साल 2018 में देहांत हो गया। बेटों ने उनका घर अपने नाम करवा लिया और मुझे बाहर कर दिया। बेटों के नाम प्रॉपर्टी ट्रांसफर करना सबसे गलत फैसला था। आज मैं खुद बेघर हूं। एसडीएम की कोर्ट में उनके हक में फैसला सुनाए एक साल हो गया। वे 40 से ज्यादा बार डीसी ऑफिस के चक्कर लगा चुके हैं, लेकिन उन्हें उनके घर का कब्जा नहीं दिलाया जा रहा।

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