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Saturday, July 12, 2025
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Ground Report: छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में फैली धर्मांतरण की आग, हिंदू धर्म छोड़ 3 हजार लोग बने ईसाई! जान के दुश्मन बने आदिवासी

Religious Conversion Protest: धर्मांतरण का सिलसिला 5 सालों तक बिना किसी की नजर में आए ऐसे ही चलता रहा. जब नारायणपुर जिले में धर्मांतरण के मामले तेजी से सामने आने लगे तो लोगों का नजरों में खटकने लगा.

Religious Conversion Protest Narayanpur ABP Groud Report Know How Mutual Violence Among Tribals Start Ground Report: छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में फैली धर्मांतरण की आग, हिंदू धर्म छोड़ 3 हजार लोग बने ईसाई! जान के दुश्मन बने आदिवासी

नारायणपुर में 3 हजार से ज्यादा आदिवासियों ने किया धर्म परिवर्तन।

Religious Conversion Protest: नक्सलवाद का गढ़ कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ के नारायणपुर (Narayanpur) जिले में धर्मांतरण की आग तेजी से फैल रही है. जिले के 25 से 30 गांव के हजारों लोगों ने क्रिश्चियन (Christian) धर्म को अपना लिया है. इस कारण हालात इतने बिगड़ गए हैं कि यहां के आदिवासी आपस में ही एक दूसरे की जान के दुश्मन बन बैठे हैं. इस आग से बचने के लिए 10 से अधिक गांव के लोग बीते 15 दिनों में अपने रिश्तेदारों के घर चले गए हैं, जबकि कई परिवारों ने जंगलों का सहारा ले लिया है. लोगों में मन में खौफ है कि अगर वे वापस अपने घर आए तो मूल धर्म के आदिवासी उनके जान के दुश्मन बन जाएंगे. आखिर नारायणपुर जैसे शांत इलाके में क्यों इस तरह की परिस्थिति बनी और इसकी शुरुआत कैसे हुई? क्यों आदिवासी अपने ही आदिवासी भाइयों की जान के दुश्मन बन बैठे? इन्हीं सब सवालों के जवाब जानने के लिए ABPLIVE के संवाददाता अशोक नायडू नारायणपुर के संवेदनशील गांव में पहुंचे और वहां रहकर जानने की कोशिश की कि आखिर किस वजह से धर्मांतरण के मुद्दे को लेकर इस तरह के हालात बने…

नारायणपुर में तरह शुरू हुआ धर्मांतरण का सिलसिला

जब लोगों से हमने बात करने की कोशिश की तो उन्होंने बताया कि बस्तर संभाग के अंतर्गत 7 जिले आते हैं और इन 7 जिलों में 60% आबादी आदिवासियों की है. नारायणपुर जिला संभाग के सबसे बड़े जिले में से एक है. पिछले 4 दशकों से नक्सलवाद का दंश झेल रहे यहां के आदिवासी बाहरी दुनिया से पूरी तरह से अनजान हैं. क्योंकि नक्सलियों ने इन गांवों तक कभी विकास पहुंचने नहीं दिया. इसी कारण यहां के हजारों युवाओं को रोजगार के लिए पलायन करना पड़ा. हालांकि जब वे वापस लौटे तो उन्हें एहसास हुआ कि कुछ बाहरी व्यक्ति उनके गांव में आने लगे हैं, जिसके बाद अंदरूनी गांवों में बैठकों का दौर शुरू हुआ. सैकड़ों गांव में अलग-अलग समाजों की बैठकें होने लगीं. कुछ बैठक हिंदू धर्म के तहत होने वाले तीज त्योहारों को लेकर हुई, तो कुछ हिंदू समाज के लोगों को अलग धर्म में शामिल करने को लेकर हुईं. और यहीं से मूल धर्म के आदिवासियों का दूसरे धर्म में जाने का सिलसिला शुरू हुआ.
5 साल से चल रहे धर्मांतरण के खेल का ऐसे हुआ खुलासा
शुरुआत में तो कुछ आदिवासी ऐसे थे जिन्होंने स्वेच्छा से दूसरे धर्म को अपनाया. जबकि कुछ आदिवासियों ने उन्हें देखकर, और उनकी बातों पर विश्वास रखकर धर्मांतरण का मन बनाया. ये सिलसिला अगले 5 सालों तक बिना किसी की नजर में आए ऐसे ही चलता रहा. लेकिन जब नारायणपुर जिले में धर्मांतरण के मामले तेजी से सामने आने लगे तो लोगों का नजरों में ये खटकने लगा. लोगों ने नोटिस किया कि अंदरूनी गांव में तेजी से गिरजा घरों को बनाने का काम शुरू हो गया है. पहले यह गिरजाघर कच्चे मकानों में बने, जिसे विशेष प्रार्थना कक्ष कहा गया. लेकिन धीरे-धीरे आदिवासी इस धर्म को अपनाने लगे और कच्चे गिरजाघर पक्के और बड़ी संख्या में बनने लगे. मूल धर्म के आदिवासी विशेष समुदाय के इस खेल को समझ गए और उन्होंने इसे आदिवासी समाज और उनकी परंपरा का अपमान बताते हुए इसका विरोध करना शुरू किया.

ऐसे एक दूसरे की जान के दुश्मन बन बैठे आदिवासी
इस विरोध की शुरुआत समाज की बैठकों से हुई, जिसकी मदद से विशेष समुदाय में जाने वाले कुछ लोगों की घर वापसी कराई गई. हालांकि ये तरीका बहुत ज्यादा सफल नहीं हो सका. देखते ही देखते कुछ और सालों में लगभग ढाई से 3 हजार की आबादी हिंदू धर्म के सभी रीति रिवाज को त्याग कर पूरी तरह से विशेष समुदाय में शामिल हो गई. फिर वो दौर आया जब मूल धर्म के आदिवासियों की घर वापसी की समझाइश भी कुछ काम ना आई. तेजी से गांव के आदिवासी धर्मांतरण करने लगे. फिर जिस किसी ने भी उनको समझाने की कोशिश की, उनके साथ मारपीट होने लगी. इस तरह के मामले देखते ही देखते पूरे गांव में बढ़ने लगे, जिसके बाद धर्मांतरण ने हिंसा का रूप ले लिया. आखिर में मूल धर्म के आदिवासियों मिलकर धर्मांतरण करने वाले लोगों को गांव खाली करने को कहा और उनसे मारपीट भी होने लगी. जिसके बाद जिन लोगों ने धर्मांतरण किया उन्होंने भी हिंसा का रूप धारण कर लिया और मूल धर्म के आदिवासियों से भिड़ने लगे. हालात इतने बिगड़े की पिछले 15 दिनों में नारायणपुर में पहली बार धर्मांतरण को लेकर इस तरह के हालात देखने को मिले और आदिवासी ही आदिवासियों के जान के दुश्मन बन गए.
ग्रामीणों ने बताई सच्चाई, 15 दिसंबर से तनावपूर्ण है स्थिति
नारायणपुर जिले से करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गुर्रा गांव पड़ता है. यहीं पर सबसे पहले दो समुदाय के बीच हिंसा की शुरुआत हुई थी. ABPLIVE की टीम ने वहां पहुंचकर विशेष समुदाय के लोगों से बातचीत करने की कोशिश की. हिंसा का शिकार हुए ऐसे ही एक व्यक्ति रमेश उसेंडी ने बताया, ‘बीते 15 दिसंबर से गांव में तनावपूर्ण स्थिति है. उन्होंने स्वेच्छा से क्रिश्चियन धर्म को अपनाया है, लेकिन मूल धर्म के आदिवासी नहीं चाहते हैं कि वे अपना धर्मांतरण करें.’ फिर हमने जानने की कोशिश की कि आखिर आपने धर्मांतरण क्यों किया? तो रमेश उसेंडी ने बताया, ‘उन्हें प्रार्थना में विश्वास है. उन्हें ऐसा लगता है कि अगर वह प्रार्थना करते हैं तो उनकी सारी मनोकामना पूरी हो जाती है. विशेष धर्म में आस्था रखने से उनके कई बिगड़े काम पूरे हुए हैं और मिशनरी के लोगों ने भी उनके हर सुख दुख में उनका साथ दिया है.’ एबीपी लाइव के संवाददाता ने आगे रमेश से पूछा कि क्या मिशनरी के द्वारा धर्मांतरण करने का प्रलोभन दिया जाता है? रमेश ने ऐसा कुछ भी होने से साफ मना कर दिया. उसने बताया कि उन्हें किसी तरह का प्रलोभन नहीं मिलता, लेकिन जरूर विशेष समुदाय के लोगों का साथ मिलता है. खासकर उन्हें प्रार्थना में काफी ज्यादा यकीन है.

जब 300 लोग हाथों में डंडे लेकर शांति नगर की ओर बढ़े…
इसके बाद ABPLIVE की टीम नारायणपुर शहर में ही मौजूद शांति नगर जा पहुंची, जहां बीते 2 जनवरी सोमवार को सबसे ज्यादा हिंसा हुई. इस इलाके में मौजूद चार गिरजाघरों को तोड़ दिया गया और विशेष समुदाय के लोगों के घर में भी तोड़फोड़ की. जब इन गिरजाघरों और टूटे घरों को देखने एबीपी न्यूज़ की टीम पहुंची तो यहां बैजनाथ सलाम से मुलाकात हुई. बैजनाथ सलाम ने बताया कि वह भी विशेष समुदाय से हैं, उनके घर में भी तोड़फोड़ हुई है और उनकी पत्नी को डंडे से पीटा गया है. उनकी 16 साल की बेटी से छेड़खानी की गई है. जब यहां हिंसा हुआ तब वह घर में मौजूद नहीं थे, लेकिन उन्होंने जरूर देखा कि करीब 200 से 300 लोग हाथों में बड़े-बड़े डंडे लेकर शांति नगर की ओर बढ़ रहे हैं और जितने भी विशेष समुदाय के लोगों के घर और आसपास के गिरजाघर हैं वहां तोड़फोड़ मचा रहे हैं. बैजनाथ सलाम ने बताया कि कुछ साल पहले उन्होंने अपने मूल गांव रेमावंड में क्रिश्चियन धर्म को अपनाया था. इस धर्म को अपनाने की वजह भी बैजनाथ सलाम ने भी वही बताया जो रमेश उसेंडी ने बताया.
सोमवार को जो हुआ उसने सब कुछ तबाह कर दिया
इसी शांति नगर में रहने वाली महिला वेदवती रहती हैं. जब उनसे हिंदू धर्म छोड़ने की वजह पूछी गई तो उन्होंने चुप्पी साध ली. जांच की कड़ी को बढ़ाते हुए हम सोमवार के दिन हिंसा का शिकार हुए एक शिक्षक के पास पहुंचे, जिन्होंने बताया कि करीब 3:30 बजे उन्हें सूचना मिली कि उन्हें अपना घर खाली करना है, क्योंकि कुछ लोग हाथों में डंडा लेकर उनके घरों की ओर बढ़ रहे हैं, और तोड़फोड़ मचा रहे हैं. जिस वक्त यह घटना हुई उस वक्त घर में कोई मौजूद नहीं था, लेकिन जब 2 घंटे बाद वह वापस लौटे तो उनके घर के सामान पूरे टूटे-फूटे पड़े थे. उपद्रव मचाने वाले लोगों ने उनके घर का एक भी सामान नहीं छोड़ा और तोड़फोड़ कर पूरा नाश कर दिया. उन्होंने बताया कि शांति नगर में काफी सालों से विशेष समुदाय के लोग रहते हैं, इस तरह के हालात देखने को नहीं मिले, लेकिन सोमवार को जो हुआ उससे उनका सब कुछ खत्म हो गया. शिक्षक ने बताया कि शांति नगर के अधिकांश लोग विशेष समुदाय के हैं और भगवान यीशु में अपनी आस्था रखते हैं. शायद इसी की वजह से उपद्रवियों ने उनके मकानों को तोड़ा है. उन्होंने बताया कि मिशनरी की ओर से उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए कोई जोर जबरदस्ती नहीं किया गया है. वह स्वेच्छा से क्रिश्चन धर्म में शामिल हुए हैं.

बीच बचाव करने आई पुलिस का भी फोड़ा सिर
आखिर इस तरह की हिंसा क्यों हो रही है? इसे जानने के लिए हमारे संवाददाता अशोक नायडू ने सबसे पहले गुर्रा गांव पहुंचकर इसकी पूरी जानकारी ली. तब यहां के ग्रामीणों से जानकारी मिली की 31 दिसंबर को देर रात विशेष समुदाय के लोग आदिवासियों के घर पहुंचे हुए थे और जो मूल धर्म के आदिवासी हैं उनके घर पहुंच कर उन्हें बाहर निकलने को कहा. वे जैसे ही बाहर निकले तो उनसे हाथापाई शुरू कर दी. गांव के करीब 50 से 60 लोगों की बुरी तरह से पिटाई कर दी. उसके बाद पूरे गांव वालों ने पुलिस को इसकी जानकारी देने के लिए सुबह एड़का थाना पहुंचे और यहां पर लिखित आवेदन दिया. वापस जब ग्रामीण अपने गांव लौटे तो 1 जनवरी रविवार को सुबह अपने गांव में बैठक रखी, लेकिन  यहां भी विशेष समुदाय के लोग अपने हाथों में डंडे लेकर पहुंच गए और दोनों समुदाय के बीच यहां काफी देर तक मारपीट होने लगी. जैसे इसकी जानकारी एड़का  थाना प्रभारी तुलेश्वर जोशी को लगी तो वह भी अपने दल बल के साथ ग्रामीणों को शांत कराने पहुंच गए, लेकिन इस दौरान वह भी ग्रामीणों के हिंसा के शिकार हो गए, और थाना प्रभारी के सिर पर लाठी से वार करने से उन्हें गंभीर चोट आई.
लोगों ने SP को भी नहीं बख्शा, सिर पर बरसाए डंडे
मूल धर्म के आदिवासियों ने कहा कि थाना प्रभारी और जवानों पर विशेष समुदाय के लोगों ने ही हमला किया, जिसमें वे घायल हुए. इस घटना के बाद जैसे-तैसे पुलिस ने बड़ी संख्या में यहां सुरक्षाबलों को तैनात कर मामला शांत करा लिया, लेकिन जब 1 जनवरी की रात सर्व आदिवासी समाज को इसकी जानकारी मिली तो 2 जनवरी सोमवार को सर्व आदिवासी समाज ने इस घटना के विरोध में नारायणपुर बंद बुलाया. इस बंद के पहले एसपी और कलेक्टर के साथ कलेक्ट्रेट में सर्व आदिवासी समाज के लोगों की बैठक हुई, लेकिन जब बैठक होने के बाद बाहर निकले तो उन्हें जानकारी मिली कि कुछ लोग जो कलेक्ट्रेट की ओर बढ़ रहे थे. उन्होंने शहर के चर्च में घुसकर तोड़फोड़ की और बुरी तरह से गिरजा घर के सामानों को नुकसान पहुंचाया. इसकी जानकारी जब नारायणपुर के एसपी सदानंद कुमार को लगी तो वे भी अपने दल बल के साथ इन उपद्रवियों को रोकने के लिए चर्च पहुंचे, लेकिन यहां उपद्रवियों ने पुलिस के जवानों पर भी हमला बोल दिया और एसपी के सिर पर भी डंडे से वार कर उन्हें चोटिल कर दिया, जिसके बाद पुलिस के जवानों ने इन उपद्रवियों को रोका और मामला शांत कराया.
‘पुलिस पर हमला करने वाले दूसरे समाज के लोग’
 
 जब सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष हीरा सिंह से इस पूरे मामले पर चर्चा की तो उन्होंने बताया कि जिन लोगों ने चर्च में तोड़फोड़ की वह सर्व आदिवासी समाज के लोग नहीं हैं पता नहीं वह लोग कौन हैं, और क्यों पुलिस पर हमला किया और गिरजा घरों में तोड़फोड़ की. सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष ने कहा कि पुलिस को जरूर इस पर कार्यवाही करनी चाहिए ,ऐसे लोगों की शिनाख्ती कर  कड़ी से कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए ,सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष ने यह भी कहा कि नारायणपुर वासी प्रकृति के उपासक हैं, और गांव की देवी  देवता को ही अपना सब कुछ मानते हैं, लेकिन कुछ सालों से मिशनरी के लोग यहां पहुंच कर भोले-भाले आदिवासियों का मतांतरण कर रहे हैं, और उन्हें अपने धर्म में शामिल करने की कोशिश कर रहे हैं.

SP ने पत्र लिखकर कराया था अवगत
बस्तर में धर्मांतरण को लेकर कुछ महीने पहले भी सुकमा के एसपी सुनील शर्मा ने अपने अधीनस्थ अधिकारियों को पत्र लिखकर यह बताया था कि सुकमा के बीहड़ इलाकों में लगातार मूल आदिवासी अपना धर्म बदल रहे हैं और विशेष समुदाय में शामिल हो रहे हैं. सुकमा के एसपी सुनील शर्मा से जब इस मामले में बात की गई तो उन्होंने बताया  कि उन्होंने 12 जुलाई 2022 को  अपने अधीनस्थ अफसरों को पत्र लिखा था. इसमें उन्होंने लिखा था कि सुकमा जिले में ईसाई मिशनरियों और धर्म परिवर्तन आदिवासियों के द्वारा स्थानीय आदिवासियों को बहला-फुसलाकर धर्मांतरण करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. उन्होंने यह भी लिखा था कि धर्म परिवर्तित आदिवासी समाज के बीच विवाद की स्थिति बन सकती है, इसलिए इस गतिविधि पर नजर रखें कानून व्यवस्था ना बिगड़े इसका खास ध्यान रखें.
कितने ग्रामीणों ने किया धर्मांतरण? प्रशासन के पास नहीं है जानकारी
नारायणपुर के मामले में डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट अजीत वंसम ने  बीते 1 महीने से उन्हें भी धर्मांतरण को लेकर दो समुदाय के बीच विवाद की जानकारी मिल रही थी, जिसके बाद से ही एसपी को अवगत कराकर शांति से समस्या का निदान करने को कहा गया था. कलेक्टर ने बताया कि धर्मांतरण के मामले में कई लोगों के घायल होने की जानकारी उनको भी मिली है, और खुद एसपी भी घायल हुए हैं, जिले के सभी प्रशासनिक अधिकारी धर्मांतरण की वजह से उपजे विवाद को शांत कराने में अपनी पूरी सेवा दे रहे हैं. बीते कुछ दिन पहले करीब 300 से 400 की संख्या में विशेष समुदाय के लोग कलेक्ट्रेट में अपनी 16 सूत्रीय मांग को लेकर आए थे और करीब 26 घंटो तक उन्होंने घेराव किया था. उन्हें शांत कराकर वापस भेजा गया था. कलेक्टर ने कहा कि जिस तरह के हालात नारायणपुर में पैदा हुए उसको लेकर अपने उच्च अधिकारियों को भी लिखित में अवगत कराया गया है. साथ ही इस इलाके में कहीं भी कानून व्यवस्था भंग ना हो इसकी पूरी कोशिश की जा रही है. धर्मांतरण को लेकर कितने गांव में और कितने ग्रामीण धर्मांतरण कर चुके हैं इनकी जानकारी उनके पास नहीं है.
इन गांवों में सबसे ज्यादा लोगों ने बदला अपना धर्म
ग्राउंड रिपोर्टिंग में जाना कि लगभग 25 से 30 गांव ऐसे हैं जहां के लोग धर्मांतरण कर चुके हैं, और इनकी आबादी भी ढाई से 3 हजार है. खासकर एड़का, गुर्रा, बयानार, रेमावंड, बेनूर, तोयपरा, शांति नगर, बख्रुपारा, जिले के ऐसे 25 से 30 गांव हैं जहां बड़ी संख्या में धर्मांतरण हुआ है. इनकी आबादी भी 3 हजार से 5 हजार हो सकती है, हालांकि सरकारी कार्यालय में इसके कोई आंकड़े नहीं है. वहीं नारायणपुर के जानकार रितेश तम्बोली, अभिषेक झा का मानना है कि जिले के ग्रामीण इलाकों में तेजी से धर्मांतरण बढ़ रहा है और लोग दूसरे समुदाय में शामिल हो रहे हैं, इसे रोकने के लिए प्रशासन की ओर से जो प्रयास किए जाने हैं वह बिल्कुल भी नहीं हो रहा है. यही वजह है कि मिशनरी के लोग आसानी से इन गांवों तक पहुंच रहे हैं और मूल आदिवासियों को अपने धर्म में शामिल करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. भोले भाले आदिवासी भी बहुत जल्द इनके बातों में आकर अपना धर्म परिवर्तित कर गांव गांव में गिरजाघर बनाकर प्रार्थना कर रहे हैं.

पुलिस की लापरवाही से गांव में बिगड़े हालात
नारायणपुर विधानसभा के पूर्व विधायक रहे और वर्तमान में भाजपा के प्रदेश महामंत्री केदार कश्यप ने कहा कि वे 2 बार इस विधानसभा क्षेत्र से विधायक रह चुके हैं. उस दौरान धर्मांतरण का एक भी मामले सामने नहीं आया था, लेकिन कांग्रेस के बीते 4 साल के कार्यकाल में बस्तर संभाग में तेजी से धर्मांतरण के मामले बढ़े हैं और हजारों की संख्या में मूल धर्म के आदिवासी मिशनरी लोगों के बहकावे में आकर अपना धर्म छोड़ विशेष समुदाय में शामिल हो गए हैं. उन्होंने बताया कि इसके लिए सबसे बड़ी चूक प्रशासन की तरफ से हुई है, प्रशासन ने धर्मांतरण रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया, जिसके चलते नारायणपुर में आज इस तरह के हालात देखने को मिल रहे हैं. ईसाई मिशनरी लोगों की कोई पहचान प्रशासन की ओर से नहीं की जाती है. वे  बेधड़क नारायणपुर के गांव-गांव में जाकर भोले-भाले आदिवासियों से मिलते हैं और बहला फुसलाकर धर्म मे शामिल करते है. उसके बाद धीरे-धीरे गिरजाघरों का निर्माण कर एक टारगेट की तरह आदिवासियों को धर्म परिवर्तन कराते हैं. उन्होंने कहा कि अभी भी जिस तरह की हिंसा नारायणपुर में देखने को मिली है वह सिर्फ मिशनरी लोगों की वजह से ही हुई है, लेकिन प्रशासन ने उन लोगों पर कार्यवाही करना छोड़ भाजपा और सर्व आदिवासी समाज के लोगों पर कार्यवाही कर उन्हें जेल में ठूस रही है. सुकमा के एसपी ने भी पत्र लिखकर पहले इस बात का जिक्र किया था कि सुकमा में धर्मांतरण को लेकर हालात बिगड़ रहे हैं, बावजूद इसके राज्य सरकार की ओर से धर्मांतरण को रोकने के लिए कोई कदम समय पर नहीं उठाया गया. लिहाजा नारायणपुर जैसे शांत इलाके में आए दिन हिंसा हो रही है.
धर्मांतरण को लेकर कवासी लखमा ने BJP पर साधा निशाना
वहीं बस्तर में धर्मांतरण को लेकर और नारायणपुर में बिगड़े हालात को लेकर आबकारी मंत्री कवासी लखमा का कहना है कि धर्मांतरण भाजपा का ही बोया हुआ बीज है, और आज यह हालात देखने को मिल रहे हैं. कांग्रेस हमेशा ही आदिवासियों के हितेषी रही है और उन्हें अपने मूल धर्म और आदिवासी परंपराओं को जारी रखने के लिए प्रेरित करते आ रहे हैं. लेकिन भाजपा शासनकाल में जिस तरह धर्मांतरण को बढ़ावा दिया गया उसी का नतीजा है कि लगातार बस्तर संभाग में और खासकर नारायणपुर में इस तरह की हिंसा बढ़ रही है. कवासी लखमा ने कहा कि सरकार मूल धर्म के आदिवासियों के लिए उनके गांव में देव गुड़ी बनाने के लिए 10-10 लाख रुपये खर्च कर रही है. इसके अलावा आदिवासियों द्वारा मनाए जाने वाले हर तीज त्योहारों पर स्थानीय विधायक शामिल होकर आदिवासियों को धर्मांतरण नहीं करने की सलाह दे रहे हैं. ऐसे में जो भी आरोप कांग्रेस पर लगाया जा रहा है वह सरासर गलत है, और लगातार धर्मांतरण होना  भाजपा को ही इसका जिम्मेदार ठहराया है.
‘आदिवासियों पर अपनी परंपरा छोड़ने का कोई दबाव नहीं’
मसीह समाज के अध्यक्ष जे.पी पाल का कहना है कि धर्मांतरण को लेकर मसीह समाज पर तरह-तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं, लेकिन मसीह समाज बस्तर संभाग के किसी भी आदिवासी को किसी तरह का कोई प्रलोभन मसीह समाज में शामिल होने के लिए नहीं दे रहा है. अंदरूनी गांव में आदिवासियों की मसीह समाज के प्रति आस्था बढ़ी है, और वे प्रार्थना में विश्वास रखते हैं. यही वजह है कि वह स्वेच्छा से इस धर्म को अपना रहे हैं. उनसे किसी तरह की जोर-जबर्दस्ती नहीं की जा रही है, और ना ही हिंदू धर्म के देवी-देवताओं को लेकर दुष्प्रचार किया जा रहा है. जो आदिवासी ईसाई धर्म में शामिल हो रहे हैं उन्हें अपने आदिवासी परंपरा और और रीति रिवाज को छोड़ने के लिए नहीं कहा जा रहा है. वे सिर्फ मसीह समाज में आस्था रखकर क्रिश्चियन समुदाय में शामिल हो रहे हैं, लेकिन धर्मांतरण को लेकर गलत तरीके से मसीह समाज को पेश किया जा रहा है और बस्तर में हिंसा जैसे हालात पैदा हो रहे हैं. उनके गिरजाघरों को तोड़ा जा रहा है. विशेष समुदाय में शामिल होने वाले लोगों से बेरहमी से मारपीट की जा रही है, लेकिन प्रशासन इस पर कोई कार्यवाही नहीं कर रहा है. उल्टा मसीह समाज के लोगों को ही प्रताड़ित किया जा रहा है.

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