
क्या आप यकीन करेंगे कि जो दवा फार्मा कंपनी में जिस कीमत में तैयार होती है, वह आप तक पहुंचते-पहुंचते 1400 फीसदी से भी ज्यादा महंगी हो जाती है। यूटी प्रशासन के ड्रग कंट्रोलर की इंक्वायरी में ये तथ्य सामने आया है।
ड्रग कंट्रोलर ने तीन अलग-अलग ब्रांड की दवाओं (सिरप) को लेकर इंक्वायरी की तो पता चला कि ये दवा महज 18 रुपए में तैयार हो रही थी, लेकिन डिस्ट्रिब्यूर और केमिस्ट शॉप से होते हुए कंज्यूमर को 226.95 रुपए में मिली।
इसकी एमआरपी 267 रुपए थी, यानी मैन्यूफैक्चरिंग रेट से 1483 फीसदी महंगी। अब प्रशासन के हेल्थ सेक्रेटरी यशपाल गर्ग ने दवा कंपनियों के खिलाफ उचित कार्रवाई के लिए नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी, नई दिल्ली को लेटर लिखकर कहा है कि ये दवाएं नॉन-शेड्यूल हैं, इनके एमआरपी पर कोई कंट्रोल नहीं है।
इस संबंध में जांच करके उचित कार्रवाई की जाए।दरअसल, यशपाल गर्ग ने खुद ये दवाएं 15 अप्रैल को सेक्टर-16 के अस्पताल में सरप्राइज चेकिंग के दौरान खरीदीं थीं। वे आम मरीज बनकर अस्पताल की इमरजेंसी में इलाज करवाने गए थे।
डॉक्टर ने उन्हें सस्ती दवा की जगह महंगे ब्रांड की दवा लिखकर दे दी थी। उन्होंने डॉक्टर से जवाब तलब किया था और इंक्वायरी भी शुरू करवा दी थी। इस इंक्वायरी में अब सामने आया है कि जो दवा महज 18 रुपए में बन रही है वह केमिस्ट शॉप पर 200 से 250 रुपए तक पहुंच जाती है और दिखावे के लिए मामूली डिस्काउंट दे दिया जाता है। {शेष | पेज 4 पर
चंडीगढ़ में भी करेंगे मॉनिटरिंग यूनिट का गठन: गर्ग
गर्ग ने इन दवाओं की मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों और डीलर्स के खिलाफ उचित कार्रवाई के लिए नेशनल फार्मास्यूटिक प्राइजिंग अथॉरिटी को लेटर लिखा है। उन्होंने इस संबंध में जांच की मांग की है। कहा है कि इन ब्रांड की दवाओं के एमआरपी पर किसी का कंट्रोल नहीं है।
इनके मैन्यूफैक्चरर्स और डीलर्स ने संबंधित स्टेट ड्रग अथॉरिटी को इनकी एमआरपी के बारे में जानकारी नहीं दी है। गर्ग ने कहा कि यूटी चंडीगढ़ में फार्मास्यूटिकल प्राइस माॅनिटरिंग रिसोर्स यूनिट का गठन किया जा रहा है ताकि दवाओं के एमआरपी पर कंट्रोल किया जा सके।
पेट दर्द की इन दवाओं की हुई जांच
मेकैन – ये दवा परवाणु, हिमाचल प्रदेश में बन रही है। इस पर एमआरपी 267 रुपए लिखा है, जबकि ये महज 18 रुपए में बन रही है। इसे डिस्ट्रिब्यूटर ने 25 रुपए में खरीदा और बाजार में केमिस्ट शॉप तक ये 171 रुपए की हो गई। अब कंज्यूमर को एमआरपी 267 रुपए पर 15 परसेंट डिस्काउंट के बाद 226.95 रुपए में मिली।
रीकेन – ये दवा बद्दी में 19 रुपए में तैयार हो रही है, जिसका एमआरपी 159 रुपए लिखा जा रहा है। ये रिटेलर के पास 111.94 रुपए में पहुंची और मरीज को 15 परसेंट डिस्काउंट के बाद 135 रुपए में मिली। यानी मैन्यूफैक्चरिंग प्राइस से 837 परसेंट महंगी।
सुफिट-ओ – ये दवा बद्दी में 18 रुपए में बनती है। इस पर एमआरपी 160 रुपए लिखा गया। ये दवा मरीज को डिस्ट्रिब्यूटर, रिटेलर से होते हुए 136 रुपए में मिल रही है यानी कि 889 फीसदी महंगी।