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Sunday, December 22, 2024
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MP News: जबलपुर से शुरू हुआ था झंडा सत्याग्रह, अंग्रेजी दमन के बावजूद फहराया ध्वज

ब्रिटिश हुकूमत के साथ समझौते के अंतर्गत नागपुर के आंदोलनकारी मुक्त कर दिए गए परंतु जबलपुर के सत्याग्रही अपनी पूरी सजा काटकर ही लौटे.

MP News: Flag Satyagraha started from Jabalpur, hoisted the flag despite British repression MP News: जबलपुर से शुरू हुआ था झंडा सत्याग्रह, अंग्रेजी दमन के बावजूद फहराया ध्वज

फाइल फोटो.

जबलपुर. स्वाधीनता आंदोलन की जिन प्रमुख घटनाओं ने अंग्रेजों को झकझोर दिया था, उनमें से एक झंडा सत्याग्रह भी प्रमुख है. जबलपुर से 18 मार्च 1923 को झंडा सत्याग्रह का आगाज हुआ और नागपुर से इसने अपना व्यापक रूप धारण कर लिया. इसके बाद 18 जून 1923 को ‘झंडा दिवस’ के रुप में देशव्यापी आंदोलन की शुरुआत हुई. 17 अगस्त 1923 को अपनी सफलता की इबादत लिखता हुआ यह सत्याग्रह खत्म हो गया. इसके बाद ब्रिटिश हुकूमत ने झुकते हुए भारत को झंडा फहराने की इजाजत दे दी.

झंडा सत्याग्रह की पृष्ठभूमि और इतिहास

इतिहासकार डॉ आनंद राणा के मुताबिक, झंडा सत्याग्रह की पृष्ठभूमि और इतिहास का आरंभ अक्टूबर 1922 से ही हो गया था,जब असहयोग आंदोलन की सफलता और प्रतिवेदन के लिए कांग्रेस ने एक जांच समिति बनाई थी.यह कमेटी जब जबलपुर पहुंची तब इसके सदस्यों को विक्टोरिया टाऊन हाल (आज का गांधी भवन) में अभिनंदन पत्र भेंट किया गया और इस दौरान तिरंगा झंडा (उन दिनों इसमें बीच में चक्र की जगह चरखा होता था) भी फहरा दिया गया.

बकौल डॉ राणा, स्वदेशी झंडारोहण की खबरें समाचार पत्रों में प्रकाशित होकर इंग्लैंड की संसद तक पहुंच गईं. हंगामा हुआ और भारतीय मामलों के सचिव विंटरटन ने सफाई देते हुए आश्वस्त किया कि अब भारत में किसी भी शासकीय या अर्धशासकीय इमारत पर तिरंगा झंडा नहीं फहराया जाएगा. इसी पृष्ठभूमि ने झंडा सत्याग्रह को जन्म दिया. मार्च 1923 को पुनः कांग्रेस की एक दूसरी समिति रचनात्मक कार्यों की जानकारी लेने जबलपुर आई जिसमें डॉ. राजेंद्र प्रसाद, सी. राजगोपालाचारी, जमना लाल बजाज और देवदास गांधी प्रमुख लोग शामिल थे. इस समिति के सभी सम्मानितजनों को मानपत्र देने हेतु म्युनिसिपल कमेटी ने टाउन हॉल में एक कार्यक्रम आयोजित किया. इस दौरान डिप्टी कमिश्नर किस्मेट लेलैंड ब्रुअर हेमिल्टन को पत्र लिखकर टाऊन हाल पर फिर से तिरंगा झंडा फहराने की इजाजत मांगी गई. हेमिल्टन ने शर्त रखते हुए कहाकि यह अनुमति तभी मिलेगी,जब साथ में यूनियन जैक भी फहराया जाएगा.इस बात पर जबलपुर म्युनिसिपैलटी के प्रसिडेंट कंछेदी लाल जैन तैयार नहीं हुए.इसी बीच नगर कांग्रेस समिति के अध्यक्ष पंडित सुंदरलाल ने जनता को आंदोलित किया कि टाऊन हाल में तिरंगा अवश्य फहराया जाएगा.तिथि 18 मार्च नियत की गई क्योंकि महात्मा गांधी को 18 मार्च 1922 को जेल भेजा गया था.18 मार्च 1923 को गांधी जी को जेल भेजने का एक साल पूरा हो रहा था.

नागपुर में भी हुआ झंडा सत्याग्रह

गौरतलब है कि, 18 मार्च को पंडित सुंदरलाल की अगुवाई में पंडित बालमुकुंद त्रिपाठी, बद्रीनाथ दुबे,कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान तथा माखन लाल चतुर्वेदी के साथ तकरीबन 350 आन्दोलनकारी टाऊन हाल पहुंचे.अंग्रेजों की सख्त चौकसी के बावजूद उस्ताद प्रेमचंद ने अपने तीन साथियों सीताराम जादव, परमानन्द जैन और खुशालचंद्र जैन के साथ मिलकर टाऊन हाल पर तिरंगा झंडा फहराया दिया.

इसके बाद नाराज कैप्टन बंबावाले ने लाठीचार्ज करा दिया, जिसमें सीताराम जादव के दांत तक टूट गए थे.सभी को गिरफ्तार कर लिया गया और तिरंगा को पैरों तले कुचल कर जप्त कर लिया गया.अगले दिन पंडित सुंदरलाल को छोड़कर सभी को छोड दिया गया। पं सुंदरलाल को 6 महीने का कारावास हुआ.उसके बाद से इन्हें तपस्वी सुंदरलाल जी के नाम से जाना जाने लगा.

नागपुर में भी हुआ झंडा सत्याग्रह

इस सफलता के उपरांत उत्साहित होकर नागपुर से व्यापक स्तर पर झंडा सत्याग्रह का आरंभ हुआ. इसका प्रसार लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में हुआ जिसमें जबलपुर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने न केवल हिस्सा लिया, बल्कि गिरफ्तारी भी दी. कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान भारत की पहली महिला स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थीं, जिन्होंने झंडा सत्याग्रह में अपनी गिरफ्तारी दी थी. 18 जून को झंडा सत्याग्रह का देशव्यापीकरण हुआ और झंडा दिवस मनाया गया.झंडा सत्याग्रह व्यापक स्तर पर फैल गया और आखिरकार 17 अगस्त 1923 को अपना लक्ष्य प्राप्त करने के उपरांत इसे वापस ले लिया गया. ब्रिटिश हुकूमत के साथ समझौते के अंतर्गत नागपुर के आंदोलनकारी मुक्त कर दिए गए परंतु जबलपुर के सत्याग्रही अपनी पूरी सजा काटकर ही लौटे. इसी समझौते में शासकीय और अर्द्ध शासकीय भवनों में स्वदेशी ध्वज फहराने की इजाजत भी मिल गई.

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