अरविंद केजरीवाल
NationaL Party: गुजरात विधानसभा, हिमाचल विधानसभा और दिल्ली एमसीडी के नतीजे सामने हैं. गुजरात में लगातार सातवीं बार बीजेपी ने सरकार बना ली है. वहीं हिमाचल में हर पांच साल में सत्ता बदलने का रिवाज कायम है. इस बार बीजेपी को सत्ता से बेदखल कर कांग्रेस ने फतह हासिल की है. दोनों राज्यों में आम आदमी पार्टी कुछ खास नहीं कर पाई लेकिन दिल्ली नगर निगम चुनाव के नतीजों में आप की बल्ले-बल्ले हुई. आम आदमी पार्टी ने यहां जीतकर 15 साल पुराना बीजेपी का किला ध्वस्त कर दिया. हिमाचल में आप को एक भी सीट नहीं मिली, लेकिन गुजरात में पार्टी के पांच विधायकों ने जीत दर्ज कर राज्य में अपनी उपस्थिति के संकेत दे दिए हैं.
सबसे बड़ी बात ये है कि आम आदमी पार्टी को अब राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल हो चुका है. बता दें कि चुनाव आयोग ने अभी तक बीजेपी, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी एवं नेशनल पीपुल्स पार्टी को राष्ट्रीय दल की मान्यता दी है.
आम आदमी पार्टी 3 राज्यों दिल्ली, पंजाब गोवा में स्टेट पार्टी है, जिसमें दिल्ली और पंजाब में उनकी सरकार है. किसी भी पार्टी को स्टेट पार्टी बनने के लिए विधानसभा चुनाव में कम से कम 6 फीसदी वोट और 02 विधानसभा सीट पर जीत जरूरी होता है. इसी नियम के तहत आप गुजरात में भी लगभग 13 प्रतिशत वोट और पांच सीटें जीतकर स्टेट पार्टी बन गई है. इसके साथ ही आप राष्ट्रीय पार्टी भी बन गई है.
क्या ये कह सकते हैं कि AAP कांग्रेस-BJP के बाद तीसरा विकल्प
आम आदमी पार्टी के प्रदर्शन के बाद सबसे बड़ा सवाल है कि क्या अब राष्ट्रीय स्तर पर आम आदमी पार्टी कांग्रेस-बीजेपी के बाद सबसे बड़ी विकल्प है. गुजरात में AAP के प्रदर्शन के बाद गुजरात चौथा राज्य है जहां आप को राज्य की पार्टी का दर्जा मिला है. उसे गुजरात में 12.92 प्रतिशत वोट मिले हैं. एक ऐसी पार्टी जो केवल दस साल पहले बनी थी और किसी अन्य पार्टी से अलग होकर नहीं बनी, उसके लिए राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा इतनी जल्दी हासिल करना कोई छोटी उपलब्धि नहीं है.
गुजरात में AAP के प्रदर्शन के क्या मायने हैं
25 वर्षों में यह पहली बार है जब गुजरात ने एक वास्तविक तीसरी ताकत देखी है. इससे पहले कांग्रेस और बीजेपी के अलावा तीसरी पार्टी जो गुजरात के लिए एक विकल्प थी वो पार्टी शंकरसिंह वाघेला की राष्ट्रीय जनता पार्टी थी जिसे 1998 के विधानसभा चुनाव में लगभग 12 प्रतिशत वोट और चार सीटें मिली थीं. हालांकि यह तब भी बीजेपी से टूट कर बनी हुई पार्टी थी.
इसके बाद से गुजरात में गैर-बीजेपी, गैर-कांग्रेसी पार्टियों में एनसीपी और जनता दल (यूनाइटेड) जैसी पार्टियां थीं, ज्यादातर मुट्ठी भर नेताओं के अपने क्षेत्रों में प्रभाव होने के कारण फल-फूल सकीं. केशुभाई पटेल की गुजरात परिवर्तन पार्टी भी 2012 के चुनावों में एक विकल्प के रूप में आई लेकिन असफल रही. इस पार्टी ने लगभग 3.6 प्रतिशत वोट हासिल किए और दो सीटें जीतीं.
केवल AAP ने लगभग 13 प्रतिशत वोट शेयर के साथ गुजरात के राजनीतिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रवेश किया है. हालांकि गुजरात में आम आदमी पार्टी को तीसरा विकल्प कहना अभी जल्दबाजी होगा. इसका कारण ये है कि उत्तर और मध्य गुजरात में इसका प्रदर्शन खराब रहा है. दिलचस्प ये है कि पंजाब में भी अपने पहले कुछ चुनावों में AAP मुख्य रूप से मालवा क्षेत्र तक ही सीमित थी. बाद में वहां सरकार बना ली.
राष्ट्रीय स्तर पर ‘आप’
आप के राष्ट्रीय पार्टी बनने के बारे में महत्वपूर्ण बात यह है कि उस स्थिति को प्राप्त करने वाली पिछली कुछ पार्टियों – एनसीपी, एनपीपी और तृणमूल कांग्रेस से इन अर्थों में अलग है कि यह किसी अन्य पार्टी से अलग होकर नहीं बनी है.
राष्ट्रीय दृष्टिकोण से, गुजरात में आप की सफलता कुछ मायनों में पंजाब में अपनी जीत से अधिक राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है.राष्ट्रीय दृष्टिकोण से पंजाब एक बाहरी राज्य है. उत्तर भारत के ज्यादातर हिस्सों से यह अक्सर चुनावी तौर पर विपरीत दिशा में चला जाता है. यह एक सिख बहुसंख्यक राज्य भी है, जिसकी एक अलग राजनीतिक व्याख्या है. पंजाब को जीतना किसी अन्य राज्य को सीधे प्रभावित नहीं करता है, जैसा कि पड़ोसी राज्य हिमाचल में आप के निराशाजनक प्रदर्शन से स्पष्ट हो गया है.
अगर आने वाले समय में आप गुजरात के राजनीतिक परिदृश्य में बीजेपी-कांग्रेस के अलावा तीसरा विकल्प बन जाती है तो यह अन्य राज्यों में भी ऐसा ही करने की कोशिश कर सकती है. जहां बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होता है.
कांग्रेस की जगह अब ‘AAP’ जनता का विकल्प
कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टी का विकल्प बताने वाली आम आदमी पार्टी बीजेपी से अधिक देश में कांग्रेस को नुकसान पहुंचा कर अपना उदय कर रही है. दिल्ली में 2013, 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो आम आदमी पार्टी का वोट शेयर बढ़ा तो कांग्रेस और बसपा को बड़ा नुकसान हुआ. इससे भाजपा को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ. वास्तव में 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों के बीच और 2017 और 2022 के एमसीडी चुनावों के बीच भी बीजेपी का वोट शेयर बढ़ा ही है, पर कांग्रेस का लगातार घटा है. गुजरात विधानसभा चुनाव के बारे में भी यही कहा जा सकता है.
इसका मतलब यह है कि पंजाब के बाहर (जहां आप ने कांग्रेस से भी ज्यादा अकालियों को नुकसान पहुंचाया), आप मुख्य रूप से कांग्रेस का विकल्प है. हिमाचल प्रदेश में इसकी असफलता मुख्य रूप से इसलिए है क्योंकि कांग्रेस ने वहां बिल्कुल भी जगह नहीं छोड़ी. आप अब भी ऐसी पार्टी नहीं है जो बीजेपी के वोटरों का दिल जीत सके. स्पष्ट रूप से, हिंदुत्व समर्थक मतदाताओं को लुभाने में AAP विफल रही है. AAP के उदय के बावजूद दिल्ली और गुजरात दोनों में बीजेपी का वोट शेयर कम नहीं हुआ है.
अगर आप एमसीडी या विधानसभा स्तर पर बीजेपी के वोट शेयर को कम करने में नाकाम रही है, तो इस बात की ज्यादा उम्मीद नहीं है कि वह ऐसा राष्ट्रीय स्तर पर कर पाएगी जहां पीएम नरेंद्र मोदी के नाम पर सीधे तौर पर वोट मिलते हैं. AAP को अगर राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी पार्टी के तौर पर खुद को स्थापित करना है तो बीजेपी के वोट बैंक में सेंध लगानी पड़ेगी.