29 C
Jalandhar
Saturday, July 26, 2025
spot_img

ऋषि राजपोपट और संस्कृत का हजारों साल पुराना रहस्य, आसान शब्दों में समझिए आखिर क्या है ये पहेली?

व्याकरण की एक समस्या 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व से संस्कृत के विद्वानों को छका रही थी.आखिरकार कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में एक भारतीय पीएचडी छात्र ने इसका तोड़ ढूंढ निकाला है. संस्कृत शब्द बनाना आसान हुआ.

Rishi Rajpopat made the breakthrough by decoding a sanskrit rule taught by the father of linguistics panini abpp ऋषि राजपोपट और संस्कृत का हजारों साल पुराना रहस्य, आसान शब्दों में समझिए आखिर क्या है ये पहेली?

पाणिनि के संस्कृत व्याकरण की पहेली सुलझाने वाले ऋृषि राजपोपट (फोटो ट्विटर से)

व्याकरण की एक ऐसी समस्या जिसने  5वीं शताब्दी ईसा पूर्व से संस्कृत के विद्वानों को पराजित किया है. आखिरकार उसने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के एक भारतीय पीएचडी छात्र के सामने घुटने टेक दिए. सेंट जॉन्स कॉलेज के ऋषि राजपोपट ने “भाषा विज्ञान के पिता” पाणिनि के सिखाए गए एक नियम को डिकोड करके कामयाबी हासिल की है. यह खोज किसी भी संस्कृत शब्द को ‘पैदा’ करना संभव बनाती है. ‘मंत्र’ और ‘गुरु’ सहित व्याकरण के नजरिए से लाखों सही शब्दों का निर्माण इससे हो सकता है.

इस खोज ने  पाणिनि की सराहनीय  ‘भाषा मशीन’ का इस्तेमाल करना आसान बना डाला है. पाणिनी की इस भाषा मशीन को  इतिहास की सबसे बड़ी बौद्धिक उपलब्धियों में से एक माना जाता है. अहम संस्कृत विशेषज्ञों ने राजपोपट की खोज को ‘क्रांतिकारी’ बताया है.  अब इसका मतलब यह हो सकता है कि पाणिनि का व्याकरण पहली बार कंप्यूटर को पढ़ाया जा सकता है. मतलब कंप्यूटर पर संस्कृत का इस्तेमाल किया जा सकता है.

पीएचडी थीसिस में डिकोड हुआ पाणिनी का फॉर्मूला

डॉ ऋषि राजपोपट ने अपनी पीएचडी थिसिस शोध के दौरान सदियों पुरानी संस्कृत की समस्या को सुलझाने का खुलासा किया. उनकी ये थिसिस 15 दिसंबर 2022 को प्रकाशित हुई.  डॉ. राजपोपट ने 2,500 साल पुराने एक एल्गोरिदम को डिकोड किया, जो पहली बार पाणिनि की ‘भाषा मशीन’ का सटीक इस्तेमाल करना संभव बनाता है. दरअसल पाणिनि की प्रणाली को उनके लिखे गए सबसे मशहूर अष्टाध्यायी से जाना जाता है. इसमें विस्तृत तौर पर 4,000 नियम हैं. माना जाता है कि इसे 500 बीसी के आसपास लिखा गया था. कहा जाता है कि इसमें लिखे गए नियम बिल्कुल एक मशीन की तरह से काम करने के लिए बनाए गए हैं. फीड इन द बेस मतलब मूल शब्द और शब्द के प्रत्यय को चरण-दर-चरण प्रक्रिया के जरिए व्याकरण के हिसाब से सही शब्दों और वाक्यों में बदलना चाहिए.

हालांकि, अब तक, एक बड़ी समस्या रही है. अक्सर, पाणिनि के दो या दो से अधिक नियम एक ही चरण में एक साथ लागू होते हैं, जिससे विद्वान इस बात को लेकर असमंजस में पड़ जाते हैं कि किसे चुनना है. तथाकथित ‘नियम संघर्ष’ को हल करने के लिए, जो ‘मंत्र’ और ‘गुरु’ के कुछ रूपों सहित लाखों संस्कृत शब्दों पर असर डालते हैं, एक एल्गोरिदम की जरूरत होती है. पाणिनि ने एक मेटारूल सिखाया. मेटारूल से मतलब है कि एक नियम जो अन्य नियमों के इस्तेमाल को नियंत्रित करता है. इसे राजपोपट ने ‘1.4.2 विप्रतिशेधे परं कार्यम’ कहा है – हमें यह तय करने में मदद करने के लिए कि ‘नियम संघर्ष’ की स्थिति में कौन सा नियम लागू किया जाना चाहिए, लेकिन पिछले 2,500 वर्षों से, विद्वानों ने इस मेटारूल की गलत व्याख्या की है और वे अक्सर व्याकरण के हिसाब से गलत नतीजे प्राप्त करते हैं.

इस मुद्दे को ठीक करने की कोशिशों में संस्कृत के कई विद्वानों ने कठिन मेहनत कर सैकड़ों अन्य मेटारूल्स बनाए,  लेकिन डॉ. राजपोपट का मानना है कि ये न केवल मौजूदा समस्या को हल करने में अक्षम हैं. वे सभी बहुत सारे अपवाद पैदा करते हैं बल्कि पूरी तरह से अनावश्यक भी हैं.  राजपोपट कहते है कि पाणिनि की ‘भाषा मशीन’ ‘आत्मनिर्भर’ है. ऋषि राजपोपट कहते हैं कि पाणिनि के पास एक असाधारण दिमाग था और उन्होंने मानव इतिहास में बेजोड़ भाषा मशीन का निर्माण किया.  उन्हें उम्मीद नहीं थी कि हम उनके नियमों में नए विचार जोड़ेंगे. जितना अधिक हम पाणिनि के व्याकरण से खिलवाड़ करते हैं, उतना ही यह हमसे दूर होता जाता है.

पाणिनि के मेटारूल का गलत मतलब निकाला गया

परंपरागत रूप से, विद्वानों ने पाणिनि के मेटारूल की व्याख्या अर्थ के तौर में की है. इस तरह से देखा जाए तो समान शक्ति के दो नियमों के बीच विरोध की स्थिति में, व्याकरण के क्रम में बाद में आने वाला नियम जीत जाता है. राजपोपट ने इसे खारिज कर दिया, इसके बजाय यह तर्क दिया कि पाणिनि का मतलब था कि क्रमशः एक शब्द के बाएं और दाएं पक्ष पर लागू होने वाले नियमों के बीच, पाणिनि चाहते थे कि हम दाएं पक्ष पर लागू होने वाले नियम को चुने. इस व्याख्या को इस्तेमाल करते हुए राजपोपट ने पाया कि पाणिनि की भाषा मशीन लगभग बिना किसी अपवाद के व्याकरण के हिसाब से सही शब्दों का निर्माण करती है.

उदाहरण के तौर पर ‘मंत्र’ और ‘गुरु’ को लें. संस्कृत वाक्य में ‘देवाः प्रसन्नाः मन्त्रैः’ में  (देवाः) से मतलब देवता, (प्रसन्ना:) से मतलब प्रसन्न होते है, मन्त्रै: से मतलब ‘मन्त्रों से है. इस वाक्य में  मन्त्र से मन्त्रैः के पैदा होने पर  हमें ‘नियम विरोध’ का सामना करना पड़ता है. ये व्युत्पत्ति ‘मंत्र + भीस’ से शुरू होती है.एक नियम बायें भाग ‘मंत्र’ के लिए और दूसरा नियम दाहिने भाग ‘भीस’ के लिए लागू होता है. हमें दाहिने भाग ‘भीस’ पर लागू होने वाले नियम को चुनना चाहिए, जो हमें सही रूप ‘मंत्रः’ देता है. इसी तरह वाक्य  ‘ज्ञानम दीयते गुरुणा’ (‘ज्ञान [ज्ञानम] गुरु [गुरुणा]’ द्वारा [दियते] दिया जाता है) ‘गुरु द्वारा’ गुरु को बनाते करते समय हमें नियम संघर्ष का सामना करना पड़ता है. व्युत्पत्ति ‘गुरु + आ’ से शुरू होती है. एक नियम बाएं भाग ‘गुरु’ के लिए और दूसरा नियम दाएं भाग ‘आ’ के लिए लागू होता है. हमें दाहिने भाग ‘अ’ पर लागू होने वाले नियम को चुनना चाहिए, जो हमें सही रूप ‘गुरुणा’ देता है.

जब राजपोपट इस मामले में आगे बढ़ने के लिए  संघर्ष कर रहे थे तब कैम्ब्रिज में उनके पर्यवेक्षक संस्कृत के प्रोफेसर विन्सेंज़ो वर्गियानी ने उन्हें एक दूरदर्शी सलाह दी. प्रोफेसर विन्सेंज़ो ने कहा,”यदि समाधानपेचीदा है, तो आप शायद गलत हैं.” राजपोपट कहते हैं कि सलाह काम आई और 6 महीने बाद, मेरे पास एक यूरेका पल था.  राजपोपट के मुताबिक,मैं इस खोज को लगभग छोड़ने के लिए तैयार था, मैं कहीं नहीं पहुंच पा रहा था, इसलिए मैंने एक महीने के लिए किताबें बंद कर दीं और बस गर्मियों का आनंद लिया, तैराकी, साइकिल चलाना, खाना बनाना, प्रार्थना की और ध्यान किया.

वह कहते है, “फिर, अनिच्छा से मैं काम पर वापस चला गया, और, मिनटों के भीतर, जैसे ही मैंने पन्ने पलटे, ये पैटर्न उभरने लगे, और यह सब समझ में आने लगा. उस पल में, मैंने अपने आप को पूरी तरह से विस्मय में सोचा: दो सहस्राब्दियों से, पाणिनि के व्याकरण की कुंजी हर किसी की आंखों के सामने सही थी लेकिन हर किसी के दिमाग से छिपी हुई थी! और भी बहुत काम करना था लेकिन मुझे पहेली का सबसे बड़ा हिस्सा मिल गया था. अगले कुछ हफ़्तों में मैं बहुत उत्साहित था, मैं सो नहीं सका और रातें तक पुस्तकालय में घंटों बिताता था, यह देखने के लिए कि मैंने क्या पाया और संबंधित समस्याओं को हल किया. उस काम में और ढाई साल लग गए.”

राजपोपट की खोज की अहमियत

संस्कृत दक्षिण एशिया की एक प्राचीन और शास्त्रीय इंडो-यूरोपीय भाषा है. यह हिंदू धर्म की पवित्र भाषा है. इसके साथ ही एक ऐसा माध्यम है जिसके जरिए सदियों से भारत के अधिकांश महान विज्ञान, दर्शन, कविता और अन्य धर्मनिरपेक्ष साहित्य का संचार किया गया है. भले ही आज अनुमान के आधार पर  केवल  25,000 लोग भारत में संस्कृत बोलते हों, लेकिन भारत में संस्कृत का राजनीतिक अहमियत बढ़ रही है और इसने दुनिया भर में कई अन्य भाषाओं और संस्कृतियों पर भी असर डाला है.

ऋषि राजपोपट कहते हैं, “भारत के कुछ सबसे प्राचीन ग्रंथ संस्कृत में हैं और हम अभी भी पूरी तरह से समझ नहीं पाए हैं कि हमारे पूर्वजों ने क्या हासिल किया था.” वह कहते हैं, “हमें अक्सर यह यकीन दिलाया जाता है कि हम अहम नहीं हैं. हम दुनिया को अधिक कुछ नहीं दे पाए, लेकिन मुझे उम्मीद है कि यह खोज भारत में छात्रों को आत्मविश्वास, गर्व से भर देगी और उम्मीद है कि वे भी महान चीजें हासिल कर सकते हैं.“

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में संस्कृत के प्रोफेसर विन्सेंज़ो वर्गियानी कहते हैं, “मेरे छात्र ऋषि ने इसे सुलझा लिया है – उन्होंने एक ऐसी समस्या का असाधारण तौर से सुरुचिपूर्ण समाधान ढूंढ लिया है, जिसने सदियों से विद्वानों को भ्रमित किया है. यह खोज ऐसे समय में संस्कृत के अध्ययन में क्रांति लाएगी जब इस भाषा में दिलचस्पी बढ़ रही है.” डॉ राजपोपट की खोज का एक बड़ा मतलब यह है कि अब हमारे पास एल्गोरिदम (गणितीय समस्याएं हल करने के लिए कुछ निर्धारित नियम) है जो पाणिनि के व्याकरण को चलाता है, हम संभावित तौर पर इस व्याकरण को कंप्यूटरों को सिखा सकते हैं.

राजपोपट कहते हैं, “प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण पर काम कर रहे कंप्यूटर वैज्ञानिकों ने 50 साल पहले नियम-आधारित नजरिए  को छोड़ दिया था. लेकिन अब कंप्यूटर को ये बताना  कि इंसानी बोली को पैदा करने के लिए पाणिनि के नियम-आधारित व्याकरण के साथ वक्ता के इरादे को कैसे जोड़ा जाए, मशीनों के साथ इंसानी बातचीत के इतिहास में और भारत के बौद्धिक इतिहास एक अहम मील का पत्थर साबित होगा.” माना जाता है कि पाणिनि एक ऐसे इलाके में रहते थे जो अब उत्तर-पश्चिम पाकिस्तान और दक्षिण-पूर्व अफगानिस्तान है.

इस खोज को लेकर पटना यूनिवर्सिटी में संस्कृत के प्रोफेसर हरीश दास कहते हैं कि नासा ने भी माना है कि कंप्यूटर के लिए संस्कृत सबसे अच्छी भाषा है वो इसलिए कि व्याकरण बेहद समृद्ध है. इसमें हर शब्द की अलग तरीके से उत्पत्ति है. हर शब्द का अपना अर्थ है. इसका हर शब्द अपने में पूर्ण है. हर शब्द की अपनी स्वतंत्र सत्ता है. तो कोई भी शब्द कहीं पर रख कर वाक्य बनाते हैं तो वो शब्द हम कैसे भी रखें वाक्य गलत नहीं होता है.

बचपन से संस्कृत से प्रेम

27 साल के ऋषि राजपोपट मुंबई के बाहरी इलाके में पैदा हुए.संस्कृत से उन्हें बचपन से ही लगाव रहा. यही वजह रही की उन्होंने हाईस्कूल में संस्कृत विषय चुना. उन्हें इस भाषा से ऐसा प्यार था कि उन्होंने मुंबई में अर्थशास्त्र से ग्रेजुएशन करने के दौरान अनौपचारिक तौर पर पाणिनि की संस्कृत व्याकरण भी सीखनी शुरू कर दी. एक रिटायर्ड प्रोफेसर ने उन्हें पाणिनी की व्याकरण पढ़ाई.

ऑक्सफोर्ड में पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने सैकड़ों ऐसे लोगों को खत लिखे जो उन्हें पैसे की मदद कर सकते थे. आखिरकार साल 2017 में वो दिन आया जब उन्हें  सेंट जॉन्स कॉलेज और कैम्ब्रिज के एशियाई और मध्य पूर्व अध्ययन संकाय में पीएचडी करने का मौका मिला. खास बात ये रही कि इसके लिए उन्हें  कैम्ब्रिज ट्रस्ट और राजीव गांधी फाउंडेशन की तरफ से पूरी स्कॉलरशिप दी गई.

ऋषि राजपोपट को जनवरी 2022 में डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया. वो  हाल ही में सेंट एंड्रयूज विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ डिविनिटी से जुड़े हैं. गौरतलब है कि कैम्ब्रिज का संस्कृत अध्ययन का एक लंबा इतिहास रहा है, और कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी में संस्कृत पांडुलिपियों का एक महत्वपूर्ण संग्रह है.

Related Articles

Stay Connected

2,684FansLike
4,389FollowersFollow
5,348SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles