
जालंधर उपचुनाव में जिस तरीके से चुनाव प्रचार हुआ, उस लिहाज से वोटिंग नहीं हुई। करीब 54.5% वोटर ही पोलिंग बूथ तक पहुंचे। वोटरों में उत्साह न देख उम्मीदवारों की टेंशन बढ़ गई है। किस पार्टी का उम्मीदवार बूथ तक पहुंचा और किसने दूरी बना ली?, इसको लेकर अभी से मंथन शुरू हो गया है। मतगणना 13 मई को होगी।

पहले जानिए… पार्टियों के लिहाज से क्या संकेत
आम आदमी पार्टी ज्यादा टेंशन में, पढ़ें 4 वजहें
1. यूथ की नाराजगी
2022 में AAP को सबसे ज्यादा सपोर्ट यूथ से मिला। उन्होंने ही बदलाव का झंडा उठाया। इस बार पोलिंग बूथों पर यूथ ज्यादा नहीं दिखा। इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह सरकारी नौकरी है। AAP सरकार दावा जरूर 29 हजार सरकारी नौकरी देने का करती है, लेकिन युवा इससे खुश नहीं। दूसरी वजह पंजाबी सिंगर सिद्धू मूसेवाला हत्याकांड का असर हो सकता है। मूसेवाला के माता-पिता को जालंधर आने पर सबसे ज्यादा सपोर्ट यूथ का मिला। जिन्होंने सीधे तौर पर कहा कि AAP को वोट मत देना।
2. महिलाओं का सपोर्ट नहीं मिला
पोलिंग बूथ पर महिलाओं की संख्या भी कम नजर आई। 2022 के चुनाव में महिलाओं ने AAP को खूब सपोर्ट दिया। इसकी वजह थी सरकार बनते ही अप्रैल 2022 से 18 साल से बड़ी उम्र की महिलाओं को एक हजार रुपए महीना देना। 14 महीने बीत जाने पर भी यह वादा पूरा नहीं हुआ। यहां तक कि सरकार इस पर अब बात तक नहीं करती।
3. वोटिंग ट्रेंड से सरकार को समर्थन नहीं
आम तौर पर माना जाता है कि जब भी वोटर रूलिंग पार्टी के हक में हो तो ज्यादा वोटिंग होती है। जालंधर में ऐसा नहीं हुआ। उलटा वोटिंग पिछले 4 लोकसभा चुनाव से भी कम रही। ऐसे में क्या यह आप के खिलाफ गई या फिर उनका ही वोटर बाहर निकला, इसके बारे में मंथन चल रहा है। क्या यही वजह रही कि CM भगवंत मान को लगातार 3 बार ट्वीट कर लोगों से वोटिंग की अपील करनी पड़ी।
4. कर्मचारियों की नाराजगी
आम आदमी पार्टी ने कर्मचारियों से वादा किया था कि सत्ता में आने पर कच्चे मुलाजिमों को पक्का कर दिया जाएगा। पुरानी पेंशन बहाल कर दी जाएगी, सर्विस के 7-9-14 सालों पर विशेष वेतनवृद्धि का लाभ दिया जाएगा। लेकिन कर्मचारियों की मांग पूरी नहीं हुई। जिससे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि कर्मचारी वर्ग भी सरकार से नाराज था।
कम वोटिंग से कांग्रेस भी टेंशन में
1. लगातार पिछले 4 बार से कांग्रेस इस सीट पर जीत रही है। तब वोटिंग प्रतिशत 60% या उससे अधिक रहा। इस बार करीब 6 से 7% वोटिंग कम हुई है। ऐसे में क्या कहीं कांग्रेस को जीताने वाला डिसाइडिंग वोटर घर से नहीं निकला?, इसकी चिंता कांग्रेस को है। हालांकि बंपर वोटिंग न होने को कांग्रेस अपने पक्ष में मानकर चल रही है।
2. कांग्रेस में इस बार सबसे ज्यादा टूट-फूट हुई। सबसे बड़ा नुकसान सुशील रिंकू के जाने से हुआ। वह लगातार कांग्रेस कैंडिडेट कर्मजीत कौर चौधरी की चुनाव रणनीति बना रहे थे, लेकिन अचानक सुबह AAP में शामिल हो गए और वहां से टिकट भी मिल गई। जालंधर वेस्ट में पहले ही AAP के MLA हैं। ऐसे में रिंकू के AAP में जाने से यहां कांग्रेस को नेतृत्व संकट का सामना करना पड़ा।
भारतीय जनता पार्टी
जालंधर लोकसभा सीट से भाजपा को बड़ी उम्मीद थी। इसकी वजह यहां का 48% अर्बन एरिया है। भाजपा को उम्मीद थी कि शहरी इलाके में उनको वोटर्स से बड़ा समर्थन मिलेगा। कम वोटिंग से ऐसा नहीं लग रहा, क्योंकि शहरी इलाकों में भी बंपर वोटिंग नहीं हुई। ऐसे में भाजपा के लिए यह सुखद संकेत नहीं हैं।
अकाली दल-बसपा
कम वोटिंग से अकाली दल-बसपा गठबंधन को भी टेंशन है। अकाली दल पहले ही भाजपा का साथ छूटने के बाद शहरी वोट बैंक को साथ नहीं जोड़ सका। यहां वह बसपा के सहारे रहा। ग्रामीण क्षेत्रों में इंदर इकबाल अटवाल के पार्टी छोड़कर भाजपा में जाने के बाद झटका लगा। अब वोटिंग कम होने से उनके लिए ज्यादा अच्छी संभावना नजर नहीं आ रही।
सबसे ज्यादा आप और सबसे कम वोटिंग कांग्रेस MLA वाले क्षेत्र में
वोटिंग के लिहाज से देखें तो सबसे ज्यादा मतदान आप विधायक बलकार सिंह के क्षेत्र करतारपुर में 58% हुआ है। इसके बाद 57.4% वोटिंग शाहकोट विधानसभा क्षेत्र में हुई। यहां से कांग्रेस के MLA हरदेव सिंह लाडी हैं। हालांकि सबसे कम 49.7% वोटिंग जालंधर कैंट में हुई। यहां भी कांग्रेस के MLA प्रगट सिंह हैं। इसके अलावा फिल्लौर में 55.8%, जालंधर नॉर्थ में 54.5% और आदमपुर में 54% वोटिंग हुई। इन सभी जगहों पर कांग्रेस के MLA हैं।
आप MLA वाली 3 सीटों पर अच्छी तो एक पर कम वोटिंग
जालंधर में करतारपुर में 58%, जालंधर वेस्ट में 56.5% और नकोदर में 55.9% वोटिंग हुई। इन तीनों जगहों पर AAP के विधायक हैं। AAP विधायक वाली चौथी सीट जालंधर सेंट्रल में 48.9% वोटिंग ही हुई। ऐसे में आप के लिए कुछ अच्छे और कुछ बुरे संकेत जरूर हैं।