
सिल्क रूट के समय व्यापार का मुख्य केंद्र रहे पंजाब के होशियारपुर की लकड़ी की नक्काशी और बर्तन भी विश्व में फेमस थे। यहां पर लकड़ी की नक्काशी के विभिन्न उत्पाद सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशों तक जाते थे, लेकिन वक्त ने करवट ली तो होशियारपुर की नक्काशी का यह धंधा लुप्त सा हो गया। इसे अब दोबारा फिर से विश्व पटल पर लाने के लिए प्रयास शुरू हो गए हैं।
अपनी पुरातन कला को बचाने के लिए होशियारपुर में प्रोजेक्ट ‘कारीगर’ शुरू किया गया है। इसके तहत होशियारपुर के वुड इनले प्रोडक्ट अब देश विदेश में बैठे कला के शौकीनों को घर बैठे अमेजन पर मिलेंगे। जिला प्रशासन ने अपनी इस पुरानी कला को बचाने के लिए ई-कॉमर्स कंपनी अमेजन के साथ एग्रीमेंट किया है।

सिर्फ होशियारपुर में ही होती थी लकड़ी की नक्काशी
होशियारपुर लकड़ी पर नक्काशी का जनक रहा है। सिर्फ होशियारपुर में ही पहले लकड़ी की नक्काशी का काम होता था। बड़े-बड़े राजाओं महाराजाओं के महलों में आज भी लकड़ी की नक्काशी जो देखने को मिलती है वह होशियारपुर के कलाकारों की कला का कमाल है।
1880 में पहले ऑस्ट्रेलिया व 1885 में इंग्लैंड में होशियारपुर के बने उत्पादों की प्रदर्शनी लगाई गई थी। नक्काशी का काम करने वाले बताते हैं उनके बुजुर्ग कहते थे कि उस वक्त भारी मांग यूरोप से आई थी। उन्हें माल भुगताना मुश्किल हो गया था। लेकिन अब कम्प्यूटर युग में यह पुरातन कला लगभग खत्म होने पर पहुंच गई। यहां पर जो परिवार नक्काशी का काम करते थे उनकी अगली पीढ़ी ने अपनी इस कला को सहेजने के लिए प्रयास नहीं किए।

मेहनत का पूरा फल न मिलने से प्रभावित हुई कला
डिप्टी कमिश्नर कोमल मित्तल ने कहा कि वुड इनले वर्क होशियारपुर की अमीर विरासत की पहचान है और संस्कृति का अभिन्न अंग है, लेकिन समय के साथ-साथ इसके कारीगरों में काफी कमी आ गई है। उन्होंने कहा कि इसके पीछे मुख्य कारण बनाने में जितनी मेहनत लगती है, कारीगरों को शायद इसका उतना मूल्य नहीं मिल पाता।
उन्होंने कहा कि ई-कॉमर्स कंपनी अमेजन के साथ ‘कारीगर’ प्रोजेक्ट के माध्यम से होशियारपुर के इन कुशल कारीगरों के प्रोडक्ट बाजार के सामने रखे जाएंगे, ताकि कारीगरों को उनकी मेहनत की अच्छी आय मिल सके। कोमल मित्तल ने कहा कि हमारा प्रयास है कि लुप्त हो रही इस कला को फिर से जिंदा किया जाए।
लकड़ी पर हाथी दांत की नक्काशी ने दिलाई पहचान
ब्रिटिश हुकूमत के समय होशियारपुर के साथ लगते गांव बस्सी गुलाम हुसैन से लकड़ी पर हाथी के दांत की नक्काशी से तैयार की कलाकृतियों ने जिले को न सिर्फ देश बल्कि विश्व में भी पहचान दिलाई थी। लेकिन, बाद में हाथी के दांत व ऊंट की हड्डी के प्रयोग पर पाबंदी क्या लगी, धीरे-धीरे होशियारपुर में यह कारोबार मंद पड़ने लगा।
अब भी देश-विदेश से होशियारपुर आने वाले कला प्रेमी इन बेमिसाल कलाकृतियों को खरीदने डिब्बी बाजार में आते हैं।
बस्सी गुलाम हुसैन में कभी 3000 नक्काशी कारीगर थे, अब सिर्फ 300
डिब्बी बाजार में 1860 में यहां लकड़ी पर हाथी के दांत से सामान बनाने का काम शुरू हुआ था। देखते ही देखते आसपास के इलाके के 3 हजार से ज्यादा कारीगर सामान तैयार कर डिब्बी बाजार में पहुंचाने लगे। अब सिर्फ 300 के करीब ही हैं। जबकि सरकारी रिकॉर्ड में सिर्फ 150 रजिस्टर्ड हैं।