
राज्य में कानून तो बनाए जाते हैं लेकिन कुछ ऐसे हैं, जिनका सरकार अपनी मर्जी से इस्तेमाल करती है। ऐसा ही एक मामला पुलिस महकमे में तबादलों का है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर नियमों में संशोधन तो किया, परंतु लागू करते वक्त उन्हें भुला दिया।
पिछले सप्ताह राज्य के 136 एचपीएस के तबादले गृह सचिव के आदेश पर हुए, क्याेंकि तबादला सूची पर उनके हस्ताक्षर है। वहीं नियमानुसार तबादले डीजीपी की अध्यक्षता में गठित होने वाली पुलिस स्थापना कमेटी की सिफारिश पर होना चाहिए, लेकिन सरकार ने ऐसी कोई कमेटी ही गठित नहीं की है। जबकि राज्य सरकार की ओर से खुद ऐसी कमेटी के गठन को लेकर 2018 में नियम बनाए थे। लेकिन नियम कागजों में ही रह गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश हैं कि पुलिस अफसरों के तबादले के लिए पुलिस स्थापना बोर्ड या कमेटी का गठन जरूरी है। यह कमेटी डीएसपी तक के अफसरों के तबादले करेगी और आईपीएस के तबादलों के लिए सरकार से सिफारिश करेगी।
यह है मामला
सुप्रीम कोर्ट द्वारा 22 सितंबर, 2006 को प्रकाश सिंह केस में देश में पुलिस सुधारों पर दिए गए ऐतिहासिक निर्णय में देश की सभी प्रदेश सरकारों को निर्देश दिए गए थे कि हर राज्य डीजीपी की अध्यक्षता में एक पुलिस स्थापना कमेटी का गठन करेगा।
जो डीएसपी रैंक तक के पुलिस अधिकारियों के तबादले व तैनाती, प्रमोशन व अन्य सेवा संबंधी मामलों पर निर्णय लेगी। इसमें सरकार द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा। 2018 में भाजपा सरकार ने विधानसभा से हरियाणा पुलिस (संशोधन) कानून, 2018 पारित कराया, परंतु आज तक उसकी अनुपालना नहीं हुई।
एक्सपर्ट व्यू
हेमंत कुमार, एडवोकेट, पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट
हरियाणा सरकार द्वारा आज तक सुप्रीम कोर्ट से उक्त पुलिस स्थापना बोर्ड या कमेटी के गठन से छूट संबंधी भी कोई आदेश नहीं लिया है। जिस कारण हरियाणा में ऐसे बोर्ड या कमेटी का गठन एवं सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्देशित अर्थात डीएसपी रैंक तक के पुलिस अधिकारियों की तैनाती-तबादले संबंधी निर्णय लेने की शक्ति का प्रयोग कमेटी द्वारा ही किया जाना अनिवार्य है। सरकार जो कर रही है, वह सुप्रीम कोर्ट की अवमानना हाेगा।