पोस्ट ग्रेजुएशन और सर्टिफिकेट कोर्सेज करवाने वाले एक कॉलेज को लेकर विवाद चल रहा है. इस कॉलेज का नाम कॉलेज ऑफ फिजिशियन एंड सर्जन” है.

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की चिट्ठी चर्चा में है ( Image Source : PTI )
मुंबई के 100 साल पुराने कॉलेज कॉलेज ऑफ फिजिशियन एंड सर्जन (सीपीएस) पर राज्य सरकार ने भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है. ये कॉलेज पोस्ट ग्रेजुएशन और सर्टिफिकेट कोर्स करवाता है. राज्य सरकार ने केंद्र सरकार को लिखे एक पत्र में कहा है कि ये संस्थान अलग-अलग विषयों में हर साल एक हजार से ज्यादा छात्रों को पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री देता है लेकिन ये संस्थान अपने ऊपर किसी भी तरह की कोई जांच करने पर राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी), स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल का (एमएमसी) का विरोध कर रहा है.
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक सीपीएस ने ये कहते हुए सभी आरोपों से इनकार किया है कि यह कॉलेज राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड की तरह एक स्वायत्त निकाय है. इसलिए राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) या महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल (एमएमसी) के प्रति जवाबदेह नहीं है. दिलचस्प बात ये है कि कॉलेज की इस लड़ाई ने अब राजनीतिक रंग भी ले लिया है.
टीओई में छपी खबर की मानें तो केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को खत लिखकर मेडिकल एजुकेशन सेक्रेटरी डॉ. अश्विनी जोशी के तबादले की मांग की. इसी मामले में एक तरफ राज्य के चिकित्सा शिक्षा मंत्री गिरीश महाजन कॉलेज ऑफ फिजिशियन एंड सर्जन” (सीपीएस) पर निशाना साध रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी कॉलेज का पक्ष ले रहे हैं. दिलचस्प ये है कि गडकरी की पत्नी कंचन गडकरी सीपीएस से जुड़े कॉलेजों की एसोसिएशन से बतौर एडवाइजर के तौर पर जुड़ी हुई हैं.
हालांकि गडकरी का ये कहना है कि उन्होंने महाराष्ट्र के सीएम और मुख्य सचिव मनुकुमार श्रीवास्तव को खत जरूर लिखा है, लेकिन, इसमें सिर्फ सीपीएस पाठ्यक्रमों की प्रवेश प्रक्रिया जल्द शुरू करने का अनुरोध किया है.
सीपीएस को लेकर क्या ये पहला विवाद है
2018 में केंद्र सरकार ने इस कॉलेज से 36 स्नातकोत्तर (पीजी) डिप्लोमा पाठ्यक्रमों की मान्यता रद्द कर दी थी. एक जांच के आधार पर ये पाया गया था कि इन सभी पाठ्यक्रमों को मंजूरी देने में उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था.
सीपीएस पर लग चुका है डिग्रियों की हेराफेरी का इल्जाम
2018 में, महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल (एमएमसी) ने सीपीएस के 148 छात्रों की पीजी डिग्री को रद्द कर दिया था. महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल ने ये कहा था कि इन सभी छात्रों ने पीजी की परीक्षा पास करने के लिए प्रवेश परीक्षा नहीं दी थी इसलिए इन सभी छात्रों की डिग्री रद्द की जाती है.
एमएमसी ने सीपीएस पर डिग्रियों में हेराफेरी का केस दर्ज किया था. उस दौरान इस मामले की जांच मुंबई पुलिस को सौंप दी गई थी यानी सीपीएस का विवादों से पुराना नाता रहा है.
वहीं केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को 23 जनवरी को लिखे महाराष्ट्र सरकार के पत्र के मुताबिक सीपीएस मान्यता प्राप्त अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों के अलावा छोटे अस्पतालों में भी अपने पाठ्यक्रम चलाता है. इन अस्पतालों पर महाराष्ट्र सरकार या केंद्र सरकार की बहुत कम या कोई निगरानी नहीं होती है.
एमएमसी के हालिया निरीक्षण से ये पता चला है कि सीपीएस से जुड़े ऐसे दो संस्थान हैं. यहां पर पीजी के कोर्स में छात्रों को एडमिशन तो दिया गया है लेकिन ये दोनों संस्थान में काम हो नहीं रहा है. सीपीएस से जुड़े 73 अस्पतालों ने एमएमसी निरीक्षकों को जांच की इजाजत नहीं दी. 45 अस्पतालों में निरीक्षण किया गया और ये पाया गया कि इन सभी 45 अस्पतालों में बुनियादी ढांचे से लेकर शिक्षकों की गुणवत्ता में गंभीर कमियां हैं.
एमएमसी की टीम ने अपनी रिपोर्ट में ये लिखा है कि ये ऐसी कमियां है जो परिषद की न्यूनतम मानक आवश्यकताओं का उल्लंघन करती है. इनमें से कई अस्पतालों में सही बेड तक मुहैया नहीं थे. मुंबई के सांताक्रूज स्थित केनिया आई हॉस्पिटल में सिर्फ 15 बेड हैं. इस हॉस्पिटल में सीपीएस की चार सीटें हैं जबकि कम से कम 120 सीटे अनिवार्य रूप से होनी चाहिए.
एमएमसी की टीम ने अपनी रिपोर्ट में ये कहा कि अस्पताल के पास अपनी प्रयोगशाला भी नहीं है. अस्पताल के चार शिक्षक ऐसे हैं जो पीजी छात्रों को पढ़ाने के लिए शर्तों का पालन नहीं करते हैं.
एमएमसी की रिपोर्ट के मुताबिक किंग्सवे अस्पताल, नागपुर में कोई छात्रावास नहीं है. जबकि छात्र-डॉक्टरों को रोगियों की देखभाल करने के लिए लगभग 24 घंटें मौजूद होना चाहिए. छात्रावास के अभाव में उनकी शिक्षा पर असर तो पड़ ही रहा है मरीजों का इलाज भी नहीं हो पाता है.
जानकारी के मुताबिक सीपीएस अध्यक्ष डॉक्टर गिरीश मैंदराकर के लातूर में उनके प्राइवेट बच्चों के हॉस्पिटल में 25 बेड और छह पीजी सीटें हैं जबकि बेडों के ये नंबर कम-से कम 125 होने चाहिए.
सीपीएस के उपाध्यक्ष डॉ प्रशांत जाधव का औरंगाबाद में 35 बेड का पीडियाट्रिक अस्पताल है. उनके पास सीपीएस की छह सीटें हैं इस लिहाज से अस्पताल में कम से कम 150 बेड होने चाहिए.
एमएमसी के निरीक्षण में इस बात पर जोर दिया गया कि सीपीएस के 47 संस्थानों में से कई ने निरीक्षकों को संस्थानों में उपलब्ध उपकरणों और प्रयोगशाला सुविधाओं के बारे में जानकारी नहीं दी. वे अपने ओपीडी की सही जानकारी तक नहीं दे सकें. बता दें कि ओपीडी यानी ‘आउट पेशेंट डिपार्टमेंट’ हर हॉस्पीटल का जरूरी डिपार्टमेंट होता है. यहीं पर मरीजों की सभी कागजी कार्रवाई होती है.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ मनसुख मंडाविया के अनुसार, भारत में एमबीबीएस की 1,01,043 सीटें हैं और केवल 65,335 पीजी सीटें हैं. कई सालों से सीपीएस ने पीजी डिप्लोमा, फैलोशिप प्रोग्रामों की पेशकश करके इन सीटों को जरूर भरा है. सीपीएस वर्तमान में अपने 120 संस्थानों में 27 पीजी डिप्लोमा पाठ्यक्रम, फैलोशिप (एफसीपीएस) कार्यक्रम चला रहा है.
गौर करने वाली बात ये है कि केंद्र सरकार वर्तमान में केवल तीन सीपीएस पाठ्यक्रमों को मान्यता दी हुई है. गुजरात और राजस्थान सरकार ने इस शैक्षणिक वर्ष के लिए सीपीएस पाठ्यक्रमों की मान्यता वापस ले ली है.
एग्जाम से लेकर पढ़ाई तक को सीपीएस में गंभीरता से नहीं लिया जाता?
मेडिकल फील्ड में पढ़ाई से लेकर प्रैक्टिस तक को बेहद गंभीरता से लिया जाता है. स्नातकोत्तर छात्रों को पढ़ाने से पहले स्नातक (एमबीबीएस) छात्र को पढ़ाने के अनुभव की आवश्यकता होती है. वहीं परीक्षक बनने के लिए कम से कम 5 साल स्नातकोत्तर छात्रों को पढ़ाना जरूरी होता है.
शिक्षकों और परीक्षकों के लिए इन कड़े मानदंडों को सीपीएस में लागू नहीं किया गया है. सीपीएस से जुड़े संस्थानों को पढ़ाने वाले डॉक्टरों ने स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर को कभी पढ़ाया ही नहीं है.
एमएमसी की रिपोर्ट में ये कहा गया है कि चिकित्सा शिक्षा संस्थान को चलाए जाने का बुनियादी पैमाना भी सीपीएस में नहीं है. प्रवेश, पेपर सेटिंग, परीक्षा और शिक्षण का संचालन को लेकर भी कोई नियम नहीं हैं. 2018 में सीपीएस में फर्जी प्रमाणपत्र घोटाले का खुलासा करने वाले एमएमसी के पूर्व अध्यक्ष डॉ शिवकुमार उत्तुरे ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि केंद्र सरकार द्वारा सभी पहलुओं की जांच की जानी चाहिए.
कौन हैं नितिन गडकरी
नितिन गडकरी भारत सरकार में सड़क परिवहन और राजमार्ग, जहाज़रानी, जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री हैं. गडकरी सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय में सबसे लंबे समय से अपनी सेवाएं दे रहे हैं. गडकरी ने पहले 2009 से 2013 तक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया है.
महाराष्ट्र के नागपुर जfले में एक ब्रह्मण परिवार में जन्में गडकरी तीन बच्चों के पिता हैं. उन्होंने एलएलबी और एमकॉम तक की शिक्षा ली है. विवादों से भी उनका रिश्ता रहा है. लोक सभा के चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के खिलाफ कथित आपत्तिजनक बयान देने के लिए वो विवादों में घिरे और चुनाव आयोग ने उनके खिलाफ मामला दर्ज किया था.