33.3 C
Jalandhar
Sunday, July 13, 2025
spot_img

नीतीश कुमार की ‘बेवफाई’ का इंतकाम लेने की तैयारी में बीजेपी, ‘खीर’ वाले नेता के साथ पक रही खिचड़ी

नीतीश कुमार से गठबंधन टूटने के बाद बिहार में बीजेपी अकेली पड़ गई है. 2024 जीतने के लिए बीजेपी 2014 की स्ट्रैटजी अपना रही है. इसके लिए पार्टी चिराग और उपेंद्र कुशवाहा को साधने में जुटी है.

BJP winning strategy Bihar 2024 Apply 2014 Chirag Paswan Or Upendra Kushwaha abpp नीतीश कुमार की 'बेवफाई' का इंतकाम लेने की तैयारी में बीजेपी, 'खीर' वाले नेता के साथ पक रही खिचड़ी

अमित शाह के साथ उपेंद्र कुशवाहा. यह तस्वीर 2015 की है (Photo- BJP)

बिहार में महागठबंधन से नाराज चल रहे उपेंद्र कुशवाहा के दिल्ली एम्स में बीजेपी नेताओं से मुलाकात के बाद सियासी अटकलें तेज हो गई हैं. बिहार से लेकर दिल्ली तक के सियासी गलियारों में उपेंद्र कुशवाहा के जेडीयू छोड़ने की भी चर्चा चल रही है. इधर, बीजेपी ने कहा है कि अगर कुशवाहा हमारे साथ आते हैं तो उनका स्वागत रहेगा.

दरअसल, बीजेपी उपेंद्र कुशवाहा को अपने साथ लाकर बिहार में 2024 में 2014 का रिजल्ट दोहराना चाहती है. 2014 में बीजेपी और गठबंधन ने 40 में से 31 सीटों पर जीत दर्ज की थी. बीजेपी के साथ उस वक्त रामिवलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा थे.

बिहार को लेकर बीजेपी कितनी गंभीर?

  • गठबंधन टूटने के बाद गृह मंत्री अमित शाह 4 महीने में तीसरी बार बिहार दौरे पर आ रहे हैं. शाह जेडीयू और राजद के गढ़ सीमांचल में रैली कर चुके हैं.
  • बिहार के दरभंगा में 28 और 29 जनवरी को बीजेपी प्रदेश कार्यसमिति की बैठक होगी.  इस मीटिंग में लोकसभा चुनाव को लेकर बड़े फैसले किए जा सकते हैं.
  • मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बिहार में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भी बदल सकती है. वर्तमान में संजय जायसवाल बीजेपी के अध्यक्ष हैं.

बीजेपी को चिराग-कुशवाहा की जरूरत क्यों, 3 प्वॉइंट्स..

1. ओबीसी विरोधी छवि तोड़ने में मददगार
बिहार में नीतीश कुमार की महागठबंधन सरकार ने हाल ही में जाति सर्वे का आदेश दिया है. माना जा रहा है कि इस सर्वे के बाद ओबीसी और दलित समुदाय की ओर से हिस्सेदारी बढ़ाने की मांग तेज हो सकती है. इसी डर से केंद्र जाति जनगणना नहीं करवा रही है.

बिहार में पिछड़ों की हिस्सेदारी की मांग अगर तेज होती है, तो ऐसे में महागठबंधन बीजेपी की छवि ओबीसी विरोधी बनाने की कोशिश करेगी. इसी रणनीति को अचूक करने के लिए बीजेपी उपेंद्र कुशवाहा और चिराग पासवान को साथ लाना चाहती है.

(Source- Social Media)

 

2. वोट शिफ्ट कराने में माहिर
उपेंद्र कुशावाहा कोइरी जाति से आते हैं, जिसकी आबादी बिहार में करीब 3 फीसदी से ज्यादा है. वहीं चिराग जिस जाति से आते हैं, उसकी आबादी भी बिहार में 5 फीसदी है.

कुशवाहा और चिराग दावा करते रहे हैं कि अपना वोट किसी भी पार्टी में आसानी से शिफ्ट करा देते हैं. साथ ही चिराग-कुशवाहा को साथ रखने के लिए बीजेपी को ज्यादा सीटें भी नहीं देनी पड़ती हैं. 2014 चुनाव में बीजेपी ने चिराग की पार्टी को 7 और उपेंद्र कुशवाहा को 3 सीट दी थी. चिराग को 6 और कुशवाहा को 3 सीटों पर जीत मिली थी.

3. लोकसभा की 15 सीटों पर सीधा असर
उपेंद्र कुशवाहा और चिराग पासवान का असर बिहार में लोकसभा की कुल 15 सीटों पर है. इनमें हाजीपुर, उजियारपुर, वैशाली, जमुई, काराकाट, बांका और समस्तीपुर प्रमुख हैं. इसके अलावा मधुबनी, पूर्वी चंपारण, मुंगेर और मुजफ्फरपुर जैसे जिले में भी इनका असर है.

वरिष्ठ पत्रकार अरूण सिन्हा न्यू इंडियन एक्सप्रेस में लिखते हैं- बीजेपी ने बिहार में इस बार 35 सीट जीतने का टारगेट रखा है, जो अकेले संभव नहीं है. ऐसे में बीजेपी को मजबूत और छोटे सहयोगियों की जरूरत है.

चिराग मान गए, उपेंद्र कुशवाहा का इंतजार
बिहार के गोपालगंज और मोकामा उपचुनाव के वक्त बीजेपी ने चिराग पासवान को साथ आने के लिए मना लिया. गृह मंत्री अमित शाह से हरी झंडी मिलने के बाद चिराग ने बीजेपी उम्मीदवारों के पक्ष में जनसभा भी की थी.

गोपालगंज और बाद में हुए कुढ़नी चुनाव में बीजेपी को इसका फायदा भी मिला. इसके बाद चिराग के मोदी कैबिनेट में शामिल होने की चर्चा भी शुरू हो गई.

चिराग को मनाने के बाद बीजेपी की नजर अब उपेंद्र कुशवाहा पर है. 15 साल में 7 बार सियासी पलटी मारने वाले उपेंद्र कुशवाहा अगर फिर पलटी मारते हैं, तो बीजेपी की रणनीति काम कर जाएगी.

उपेंद्र कुशवाहा भी सियासी वजूद की तलाश में
2018 में मोदी कैबिनेट से इस्तीफा देने के बाद ही उपेंद्र कुशवाहा सियासी वजूद की तलाश में हैं. 2019 और 2022 में करारी हार के बाद 2021 में उन्होंने अपनी पार्टी रालोसपा का जेडीयू में विलय कर दिया.

विलय के बाद नीतीश कुमार ने उन्हें राज्यपाल कोटे से विधान पार्षद और जेडीयू संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनवाया. हालांकि, कुशवाहा की इच्छा मंत्री और उपमुख्यमंत्री बनने की थी.

एएन सिन्हा इंस्टिट्यूट के पूर्व निदेशक डीएम दिवाकर के मुताबिक कुशवाहा बिरादरी के जितने नेता हैं, वो पहले से राजद में चले गए हैं. उपेंद्र कुशवाहा राजनीतिक आस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं.

बीजेपी के लिए बिहार क्यों है महत्वपूर्ण, 2 वजह
1. लोकसभा की 40 सीट- बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं. बिहार सीमा से लगे राज्यों की सीट भी जोड़ दी जाए तो कम से कम 50 सीटें हैं, जहां पर बिहारी वोटर्स का असर है. यूपी की 80 सीट के बाद यह दूसरे नंबर की है.

2019 में बीजेपी ने इन सीटों पर एकतरफा जीत दर्ज की. किशनगंज को छोड़कर बिहार की 39 सीटों पर बीजेपी गठबंधन को जीत मिली, जिसके बूते केंद्र में पार्टी सरकार बना पाई.

2. हिंदी बेल्ट में मुद्दा तय करने में आगे- दिल्ली का रास्ता बिहार और यूपी से होकर ही जाता है. भले यह कहावत हो, लेकिन लोकसभा चुनाव में यह हकीकत बन जाता है. 1977 के बाद से ही बिहार और यूपी का पूर्वांचल हिंदी बेल्ट में चुनावी मुद्दा तय करते आया है. आगामी चुनाव के लिए अभी से बिहार-यूपी में जातीय जनगणना एक बड़ा मुद्दा बन गया है.

पर इस बार राह आसान नहीं…
2014 में बीजेपी के सामने जेडीयू और राजद अलग-अलग चुनाव लड़ रही थी, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है. राजद-जेडीयू के साथ 7 पार्टियों का गठबंधन है. 2020 में बीजेपी के साथ आए मुकेश सहनी भी महागठबंधन में शामिल हो सकते हैं.

ऐसे में अगर महागठबंधन के दलों में वोट ट्रांसफर आसानी से हो गया तो बीजेपी के सामने मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं.

 

Related Articles

Stay Connected

2,684FansLike
4,389FollowersFollow
5,348SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles