
पंजाब के जालंधर में लोकसभा का उपचुनाव बड़ा ही रोचक हो गया है। यूं तो यहां मुकाबला आम आदमी पार्टी (AAP), कांग्रेस, अकाली दल और भाजपा के बीच है लेकिन उम्मीदवारों के देख लगता है कि मुकाबला अकाली दल और कांग्रेस के बीच है। ऐसा इसलिए क्योंकि आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार सुशील रिंकू कांग्रेस से AAP में शामिल हुए।
इसी तरह भाजपा उम्मीदवार इंदर इकबाल अटवाल अकाली दल से BJP में शामिल हुए हैं। AAP और BJP ने यहां अपने किसी नेता पर भरोसा नहीं दिखाया। हालांकि कांग्रेस ने जालंधर सीट से निवर्तमान सांसद संतोख सिंह चौधरी की पत्नी करमजीत कौर को टिकट दी है। वहीं अकाली दल ने बंगा से विधायक डॉ. सुखविंदर सुक्खी को टिकट दी है।
सांसद के निधन के बाद खाली हुई सीट
जालंधर सीट से कांग्रेस के सांसद चौधरी संतोख सिंह का कुछ समय पहले निधन हो गया था। वह राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में चल रहे थे। उसी दौरान उन्हें हार्ट अटैक आ गया। उन्हें अस्पताल ले जाया गया लेकिन उनका निधन हो गया। जिसके बाद कांग्रेस ने उनके परिवार को ही टिकट देते हुए पत्नी को मैदान में उतार दिया।

दलबदलुओं को टिकट की 2 वजहें
1. AAP को कांग्रेस को पटखनी का दांव
आम आदमी पार्टी ने अपने किसी नेता को टिकट नहीं दी। अचानक सुशील रिंकू को पार्टी में शामिल करा लिया। जिन्हें आप के ही उम्मीदवार शीतल अंगुराल ने हराया था। इसके पीछे AAP की कांग्रेस को पटखनी देने का सियासी चाल है। असल में इसके जरिए आप ने शहरी क्षेत्र में सुशील रिंकू और शीतल अंगुराल के कैडर को एकजुट करने की कोशिश की है। दोनों का वोट बैंक अगर AAP के खाते में आया तो जालंधर वेस्ट विधानसभाा क्षेत्र से ही AAP को बड़ा बैनिफिट मिल सकता है। रिंकू के अचानक AAP में जाने से यहां कांग्रेस के पास इस इलाके में कोई दिग्गज चेहरा नहीं है।

2. भाजपा अटवाल के सहारे
भाजपा के इस दांव के पीछे पंजाब में सियासी कामयाबी की कोशिश है। जालंधर सीट के शहरी विधानसभा क्षेत्रों में तो भाजपा का वोट बैंक है लेकिन ग्रामीण व कस्बों में आधार नहीं है। इसलिए अटवाल पर दांव खेला गया है। इंदर इकबाल अटवाल के पिता चरणजीत अटवाल यहां से चुनाव लड़ चुके हैं। 2019 में यहां से चौधरी संतोख सिंह जीते जरूर लेकिन दूसरे नंबर पर चरणजीत अटवाल उनसे ज्यादा पीछे नहीं रहे। दोनों के वोट % में भी ज्यादा अंतर नहीं था। हालांकि उस वक्त अटवाल अकाली दल के उम्मीदवार थे।

सेमीफाइनल मान रहे, सबकी साख दांव पर
जालंधर लोकसभा उपचुनाव सभी दलों के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ है। सभी राजनीतिक दल इस चुनाव को अगले से साल 2024 के आम चुनाव का सेमीफाइनल मान कर चल रहे हैं। सत्ताधारी दल आम आदमी पार्टी संगरूर उपचुनाव हारने के बाद जालंधर को नहीं गंवाना चाहती। इससे न केवल 2024 में उन्हें झटका लग सकता है बल्कि राज्य में सरकार के कामकाज को लेकर भी आकलन होगा। कांग्रेस पिछले चुनाव में सरकार गंवाने के बाद आधार वापस पाना चाहती है। भाजपा दमदार उपस्थिति दिखाना चाहती है तो अकाली दल क्षेत्रीय पार्टी के तौर पर अपने दबदबे को वापस पाना चाहती है।

जालंधर सीट पर पार्टियों की स्थिति
कांग्रेस में टूटन ने बढ़ाई चिंता
कांग्रेस की यह सीट संतोख चौधरी के रहते पक्की थी लेकिन अब उनके देहांत के बाद कांग्रेस के लिए भी यह सीट जीतनी चुनौती बनी हुई है। कांग्रेस के साथ ड्रॉ बैक यह है कि उसके नेता साथ छोड़कर जा रहे हैं। AAP और भाजपा उनके कैडर पर सेंध लगाने में जुटी है।
भाजपा को पीएम मोदी का सहारा
भारतीय जनता पार्टी इस बार विधानसभा चुनाव की तर्ज पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम और उनके काम को आगे रखकर अपने दम पर लोकसभा उपचुनाव में उतरी है। यही वजह है कि भाजपा हर तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के किए कार्यों का बखान कर रही है। शहर से लेकर गांवों कर केंद्र की उपलब्धियों को लेकर डिजिटल प्रचार वाली गाड़ियां मैदान में उतारी हैं।

वैसे भारतीय जनता पार्टी को संगरूर में दूसरी पोजिशन मिलने पर भी हौसला मिला है कि शायद वह जालंधर में कुछ कमाल दिखा सकते हैं। लेकिन भाजपा के साथ विडंबना यह है कि उसका ग्रामीण क्षेत्रों में कोई ज्यादा आधार नहीं है। भाजपा ने ग्रामीण क्षेत्रों में वोट बैंक को साधने के लिए ही अकाली नेता को तोड़ कर अपना प्रत्याशी बनाया।
शिरोमणि अकाली दल को कैडर बचाने की चिंता
लगातार दो बार विधानसभा चुनाव में करारी हार से शिरोमणि अकाली दल के नेताओं का हौसला भी पस्त होता जा रहा है। यही कारण है कि शिरोमणि अकाली दल में नेताओं के टूटने का सिलसिला खत्म नहीं हो रहा है। आम आदमी पार्टी और भाजपा लगातार अकाली नेताओं को तोड़ रहे हैं और अपना कुनबा बढ़ा रहे हैं।
मौजूदा दौर अकाली दल के भीतर हालात यह हैं कि बड़े नेताओं को जालंधर में चुनाव जीतने से ज्यादा चिंता अपने कैडर को बचाकर रखने की है। इसमें कोई शक नहीं कि जालंधर के ग्रामीण क्षेत्रों में अकाली दल का आधार है लेकिन शहर में वह पूरी तरह से बहुजन समाज पार्टी पर निर्भर है। शहर में भाजपा ने अकाली नेताओं को तोड़कर काफी डेंट डाला है।

